Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ अन्नाणं खलु कट्ट, अन्नाणाओ न किंचि कट्ठयरं / भवसायरं अपारं, जेगाररिआ भमंति जिआ // 714 // इगबितिचउरिदियए, संमुच्छिमजीवरासिपडिआणं / दुलहाइ धम्मबोही, अबोहिलाभासु जोणीसु // 715 / / को नारयाण धम्मं, कहेइ ताणंपि बोही दूरेणं / तिरिआवि किसन्नत्ता, तेणं अइदुलह बोहिपहा // 716 // मणुआवि जवणसयवञ्चराइ, बहुविहअणारिआ कत्तो / बोहिं लहंति मूढा, दयाइपरिणामपरिमुक्का / / 717 / / अंधा बहिरा मूगा, पंगू रोगेहिं पीडिया विविहा / न लहंति बोहिलाभ, पडिया पावाडवीमज्झे / / 718 / / अन्ने अकम्मभूमी, संभूआ नहु लहंति ते बोहिं / छप्पन्नंतरदीवा, बोही तेसिपि दुल्लंभो // 719 // अन्ने धम्माभिमुहा, धम्मरसविसेसयं अयाणंता / न लहंति बोहिलाभ, हिंडंति कुधम्मिम्मिहुआ // 720 // कुच्छियदेवाराहग, कुलिंगधारी कुतित्थरइ निच्च / कुच्छिअआगमभाविअ, सुधम्मवोही न पावंति // 721 // दुद्रुत्तणेण जडत्तणेण, दुविअटपंडिअत्तेणं / संसारसूअरत्तेण, केइ बोहिं न पावंति // 722 // आलस्सोवह अन्ने, अन्ने मोहेण मोहीआ पावा / रागाइहया अन्ने, बोही तेसिपि दूरेण // 723 // अन्ने माणोवहया, अवन्नवाएण अमट्टयघट्ठा / बोहीबाहिरा तेवि, हुंति संसारबुढिकरा // 724 //

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