Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 74
________________ 67 जं वोलीणं सुक्खं, .तं वीसरिअं न तेण तित्ति गओ / संपइ समए सुक्खं, जं मुंजइ तं मुणइ एव // 692 / / तिलतुसवालग्गपि हु, चउदसरज्जुमि इत्थ संसारे / तं असिऊण न मुकं, तं दवं नत्थि अणुअपि // 693 // सो नत्थित्थ पएसो, लोए तिविहेवि जत्थ न हु जाओ / न मओ अ वाहिगहिओ, जीवो भवभमणकंतारे // 694 // सब्वे जीवा जणिआ, जणिओ सव्वेहिं एस पुण गसिओ / सब्वे अणेण गसिआ, अणाइसंसारभमणमि // 695 / / सब्वे देवा आसी, सव्वे मणुतिरिअ आसि संसारे / सव्वे अणंतवारं, परिक्कमा नरकजालाहिं // 696 / / धी धी धी संसारे, देवो मरिऊण जं तिरी होइ / मरिऊण रायराया, परिपक्कइ नरयजालाहिं // 697 // हा विसमो संसारो, तरुणो निअरुवगविओ मरिउं / जाइ ससरीरेवि अ, किमीकुलमज्झमि होइ किमी // 698 // हा हा हा अइकट्ठो. संसारो कम्मसंतई बलिया / जेण विअक्षणमणुओ, एगिदिय होइ मरिऊणं // 699 / / अंधो बहिरो मूओ, रसणिदिअवज्जिओ जिओ दुहिओ / हिंडइ अणंतकालं बेइदिअपि अलहंतो // 700 // सामी जायइ दासो, दासो सामित्तणेण आयाइ / मित्तो जायइ सत्त, सत्तूवि अ होइ पुण मित्तो // 701 / / बंधूवि होइ परो, परोवि बंधूत्तणेण संघडइ / सयणोवि अ होइ परो, परोवि सयणत्तमुवजाइ / / 702 //

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