Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 67
________________ कइआ तवतणुअंगो विमुक्कसंगो विणिज्जिआणंगो / कयमोहसिन्नभंगो होहं सिवसुहविहिरंगो // 619 // इअ भावणासुमंतं झायंताणं विसुद्धचित्ताणं / न कुणइ कया वि छलणं विसयपिसाओ समत्थो वि // 620 // एअं जे गुणभूरिसरिवयणं कामग्गिउल्हावणं धम्मज्झाणवणस्स बुढिकरणं मेहंबुतुल्लं घणं / चित्ते हंत धरंति कम्मनियले वेरग्गदंडेण ते, भंजेऊण निरंतरं वरतरं गुंजंति मुक्खे सुहं // 621 // ___सारसमुच्चयकुलयम् / नरनरवइदेवाणं जं सोक्खं सव्वमुत्तमं लोए / तं धम्मेण विढप्पइ तम्हा धम्मं सया कुणह // 622 / / उच्छन्ना किं च जरा नट्ठा रोगा य किं मयं मरणं / ठइयं च नरयदारं जेण जणो कुणइ न य धम्मं // 623 // जाणइ जणो मरिज्जइ पेच्छइ लोओ मरंतयं अन्नं / न य कोइ जए अमरो कह तह वि अणायरो धम्मे ? // 624 // जो धम्मं कुणइ नरो पूइज्जइ सामिउ व्व लोएण / दासो पेसो व्व जहा परिभूओ अत्थतल्लिच्छो // 625 // इय जाणिऊण एवं वीसंसह अत्तणो पयत्तेण / जो धम्माओ चुको सो चुक्को सव्वसुक्खाणं // 626 / / धम्मं करेह तुरियं धम्मेण य हुंति सव्वसुक्खाई। सो अभयपयाणेणं पंचेन्दियनिग्गहेण च // 627 //

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