Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 65
________________ 58 अन्नं भणंति अन्नं कुणंति अन्न मणमि चिंतंति / ही ! विसमसहावाओ महिलाओ जयम्मि पावाओ // 597 // सरिअकंतब्ब पिअं चुलि(ल)णि व्व सुअं हहा ! गुणेहि जुरं / नारी विसयपसत्ता मारेइ विवेअपरिचत्ता // 598 // सुकुमालिआइआणं नारीणं कित्तिमाणि चरिआणि / सक्किज्जंति कहेउ विउसेहिं वि वासकोडीहिं // 599 / / अंबं वा निवं वा आसन्नं आरुहंति वल्लीओ। सगुणं व निग्गुणं वा आसन्ननरं तहा महिला // 600 // न गणंति गुणं विहवं रुवं विनाणनाणसंपत्ति / उवयारिं पि विरत्ता धिरत्थु इत्थीसहावस्स / / 601 // बहुकूडकवडभरिआ बुद्धं सुद्धं नरं पयारेइ / नारी विरत्तचित्ता पावा तं चेव मारेइ // 602 / / महिलाछलेणं जालं विहिणा वित्थारिअं किर विसालं / जत्थ निवडंति मूढा तिरिआ मणुआ सुरा असुरा // 603 / / सविआरं रमणीणं दंसणमवि सीलजीवि हरइ / किं पुण पणयपयंपिअपरिचयविस्संभमाईणि / / 604 // चम्मट्टिमंसनिचए वसरुहिरपुरीसमुत्तभवणमि / छविमेत्तमणहरे नारिविग्गहे रमइ विसयंधो / / 605 / / बीभच्छकुच्छणिज्जे लज्जाव(ज)णयंमि असुइदुग्गंधे / महिलादेहावयवे किमिउ व्व नरो रई कुणइ // 606 // ताण विसयाण सम्मं चिंतिज्जंत हविज्ज किं रम्मं / .. साहारणा दरिदाण साणमाईण जे निच्चं // 607 / /

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