Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 64
________________ अइचंगो लंलिअंगो निवरमणीरमणरइअमणरंगो / वसिओ अमेज़्झकूवे नरयसरूवे चिरं कालं / / 586 / / मुक्कलमाणसपसरा किचाकिच्चाइकज्जपरिमूढ़ा / माई भइणिं धूअं विसयपसत्ता निसेवंति // 587 / / किं वा विसयपरवसा अकज्जासज्जा अईवनिल्लज्जा / सिट्ठजणगरहणिज्जं अगम्मगमणाई कुणंति ? // 588 // कामंधनिव्विवेआ पावा मारंति भायरं मित् / पुत्तं भत्तारं पि हु अहो ! दुरंतो विसयसंगो // 589 / / जंपति अलिअवयणं मुसंति लोअं धणस्स लोभेण / किं बहुणा सव्वाई पावाई कुणंति कामंधा // 590 // संसारभमणकरणा विसया विसए विसेविया पावा / दुक्खाई अविसए पुण इहयं पि हु दिति णेगाई // 591 // संपइदंसी मुद्धो विसयविलुद्धो विणस्सए तुरिअं / करिदेहमंसगिद्धो व्य वायसो जलहिजलमज्झे / / 592 // महुबिंदुसायसरिसे सुतुच्छविसएसु लालसामूढा / नाणाविहाई विसहति दुक्खलक्खाइ तिक्खाई / / 593 // जह कागिणीइ कज्जे मूढा हारंति रयणकोडि पि / तह विसयसुहे बद्धा मुद्धा हारंति सिवसुक्खं // 594 // सुबहुं पि हु तवचरणं हारइ विसयाभिलासमेत्तेग / कंडरिउ व्व. विमूढो दुठु अहो ! विसयपरिणामो // 595 // पायं विसया नारीण संगमे हुंति ताण पुण चरिअं / न मुणइ देवगुरू वि हु किं पुण पागयनरो मूढो // 596 //

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