Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 62
________________ जोइसिएसु गएम विसयामिसमोहिएण मूढेणं / जो को वि कओ दुहिओ पाणी मे तं पि खामेमि // 565 // पररिद्धिमच्छरेणं लोहनिवुड्ढेण मोहवसगेणं / अभियोगिएण दुक्खं जाण कयं ते वि खामेमि // 566 // इय चउगइमावन्ना जे के वि य पाणिणो गए वहिया / दुक्खे वा संठविया ते खामेमो अहं सव्वे // 567 // सब्वे खमंतु मझं अहं पि तेसिं खमेमि सव्वेसि / जं केणइ अवरद्धं वेरं चइऊण मज्झत्था // 568 / / न य कोइ मज्झ वेसो सयणो वा एत्थ जीवलोगंमि / दंसणनाणसहावो एको हं निम्ममो निच्चो // 569 // जिणसिद्धा सरणं मे साहू धम्मो य मंगलं परमं / जिणनवकारो पवरो कम्मक्खयकारण होउ // 570 / / इय खामणा उ एसा चउगइमावन्नयाण जीवाणं / भावविसुद्धीए महं कंम्मक्खयकारणं होउ // 571 // विसयनिंदाकुलयं / पणमित्तु वीअरायं पंचसर-गइंद-हणण-मयरायं / .. वोच्छामि विसयनिंदा-कुलयं भविआण कयपुलयं / / 572 // अबुहजणजणिराया कडुअविवाया बुहेहिं कयचाया / मुहमेत्तविहिअहरिसा विसया किपागफलसरिसा // 573 // विसयासत्ता सत्ता पत्ता नरएसु दुक्खघरएसु / विसहति वेअणाओ जाओ जाणइ जिणो ताओ // 574 //

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