Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ अभक्खाणं जं मे दिन्नं दुह्रण कस्सइ नरस्स / . रोसेण व लोभेण व तं पि य तिविहेण खामेमि // 554 / / परआवयाए हरिसो पेसुन्नं जं क्यं मए इहइ / . . मच्छरभावठिएणं तं पि य तिविहेण खामेमि // 555 / / रुद्दो खुद्दसहावो जाओ णेगासु मिच्छजाईसु / धम्मो त्ति सुहो सदो कन्नेहि वि तत्थ नो विसुओ // 556 / / परलोगनिप्पिवासो जीवाण सया घायणपसत्तो / जं जाओ दुहहेऊ जीवाणं तं पि खामेमि / / 557 / / . आरियखित्त वि मए खट्टिगवागुरियडम्बजाईसु / जे वि हया जियरांधा ते वि य तिविहेण खामेमि // 558 / / मिच्छत्तमोहिएणं जे वि हया के वि मंदबुद्धीए / अहिगरणकारणेणं वहाविआ ते वि खामेमि // 559 / / दवदाणपलीवणयं काऊणं जे जिया मए दड्ढा / सरदहतलायसोसे जे बहिया ते वि खामेमि // 560 // सुहदुल्ललिएण मए जे जीवा केइ भोगभूमीसु / अंतरदीवेसु वा विणासिया ते वि खामेमि // 561 // देवचे वि य पत्ते केलिपओसेण लोहबुद्धीए / ' जे दूहविया सत्ता ते वि य खामेमि सव्वे वि // 562 / / भवणवईणं मज्झे आसुरभावम्मि वट्टमाणेणं / / निद्दयहणणमणेणं जे दूमिया ते वि खामेमि // 563 / / वंतररूवेण मए केलीकिलभावओ य जं दुक्खं / जीवाणं संजणियं तं पि य तिविहेण खामि // 564 //

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