Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ सज्झाय संजमतवे, वेयावच्चे अ झाणजोगे अ / जे रमइ नो रमइ-असंजमम्मि सो वच्चइ सिद्धिं // 533 // जस्स खलु दुप्पणिहिआणि, इंदियाई तवं चरंतस्स / सो हीरइ असहीणेहि, सारहीव्व तुरंगेहि // 534 // सामण्णमणुचरंतस्स, कसाया जस्स उक्कडा होति / मन्नेमि उच्छुफुल्लंव निप्फलं तस्स सामण्णं / / 535 / / खामणाकुलयम् / जो कोइ मए जीवो, चउंगईसंसारभवकडिल्लंमि / दूहविओ मोहेणं, तमहं खामेमि तिविहेणं // 536 // नरएमु य उववन्नो, सत्तसु पुढवीसु नारगो होउं / जो कोइ मए जीवो, दूहविओ तं पि खामेमि // 537 / / घायणचुन्नणमाई, परोप्परं जं कयाई दुक्खाई। कम्मवसएण नरए, तं पि य तिविहेण खामेमि // 538 / / निद्दयपरमाहम्मियरूवेणं, बहुविहाइ दुक्खाई। जीवाणं जणियाई, मूढेणं तं पि खामेमि // 539 // हा ! हा ! तइया मूढो, न याणिमो जं परस्स दुक्खाइ। करवत्तयछेयणभेयणेहिं, केलीए जणियाई // 540 // जं किं पि मए तइया, कलंकलीभावमागएण कयं / दुक्ख नेरइयाणं, तं पि य तिविहेण खामेमि // 541 // तिरियाणं चिय मज्झे, पुढवीमाईसु खारभेएसु / अवरोप्परसत्थेणं, विणासिया ते वि खामेमि // 542 //

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