Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 69
________________ अच्छंतु ताव निरया जं दुक्खं गम्भवासमझमि / पतं तु वेयणिज्जं तं संपइ तुझ वीसरियं // 639 / / भमिऊण भवग्गहणे दुक्खाणि य पाविऊण विविहाई। लब्भइ माणुसजम्मं अणेगभवकोडिदुल्लंभं // 640 // -तत्थ वि य केइ गम्भे मरंति बालत्तणमि तारुन्ने / अन्ने पुण अंधलया जावज्जीवं दुहं तेसिं // 641 // अन्ने पुण कोढियया खयवाहीसहियपंगुभूया य / .. दारिदेणऽभिभूया परकम्मकरा नरा बहवे // 642 // ते चेव जोणिलक्खा भमियव्या पुण वि जीय ! संसारे / लहिऊण माणुस जं कुणसि न उज्जमं धम्मे // 643 // इय जाव न चुक्कसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स / / जीवदयाउवउत्तो ता कुण जिणदेसियं धम्म // 644 // कम्मं दुक्खसरूवं दुक्खाणुहवं च दुक्खहेउं च / कम्मायत्तो जवो न सुक्खलेसं पि पाउणइ // 645 / / जह वा एसो देहो वाहीहि अहिडिओ दुहं लहइ / तह कम्मवाहिपत्थो जीवो वि भवे दुहं लहइ // 646 / / जायंति अपच्छाओ वाहिओ जहा अपच्छनिरयस्स / संभवइ कम्मवुडूढी तह पावा पच्चनिरयस्स // 647 // अइगरुओ कम्मरिऊ कयावयारो य नियसरीरत्थो / एस उविक्खिज्जतो वाहि व्व विणासए अप्पं // 648 // मा कुणह गयनिमीलं कम्मविघायंमि किं न उज्जमह / लध्दूण मणुयजम्मं मा हारह अलियमोहहया // 649 //

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