Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 71
________________ देसणासयगं संसारे नत्थि सुहं, जम्मजरामरणरोगसोगेहिं / तहवि हु मिच्छंधजिआ, न कुणंति जिणिंदवरधम्मं // 660 / / माइंदजालसरिसं, विज्जुचमकारसत्थहं सवां / सामण्णं खणदिट्ठ, खणनट्ठ कोत्थ पडिबंधो // 661 // को कस्स इत्थ सयणो, को व परो भवसमुद्दभमणमि / मच्छुव्व भमंति जिआ, मिलंति पुण जति अइदूरं // 662 // जम्मे जम्मे सयणा-वलीउ मुक्काउ जाउ जीवेण / ताओ सव्वागासे, संगहिआओ न मायंति // 663 / / जीवेण भवे भवे, मिलिहआइ देहाई जाई संसारे / ताणं न सागरेहिं, कीरइ संखा अणंतेहिं // 664 // तेलुक्क पि असरणं, आहिंडइ विविहजोणिपविसंतं / लुक्कंतंपि न छुट्टइ, जम्मजरामरणरोगाणं // 665 / / छंडेवि. सयणवग्गं, घरसारपवित्थरंपि सयलंपि / संसार अपारवहे, अणाहपहिअव्व जाइ जिओ // 666 // वायहयपंडुपत्ताणं, संचयं जाइ दिसदिसो जेम। . इट्ठपि तह कुडुबं, सकम्मवायाहयं जाइ // 667 // हा माया हा बप्पो, हा बंधू हा पणयणी सुओ इ8ो / पिक्खतस्सवि सथ्लां, मरइ कुडु सकरुणस्स // 668 / / अहवा कुडुबमज्झे, अइदइओ वाहिवेयणाभिहओ। . सलसलइ वाहिमुम्मुर-मज्झगओ वडगपोअब्व // 669 //

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