Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ विसयसुहनिप्पिवासा जयंतु मुणिणो दुहाण कयनासा / तोडियसिणेहपासा सिद्धिवहुसुक्खबद्धासा / / 608 // उज्झियविसयपसंगं तरुणत्ते कयअणंगभडभंगं / जंबूसामिमुणिंदं वंदे उक्खणिअभवकंदं // 609 / / निरवज्जवज्जघडिअं सुदंसणमुणिस्स माणसं मन्ने / इत्थीपत्थणघणघायनिबिडघडणाहिं नो भिन्नं // 610 // कंदप्पदलणस्स भद्दमिह थूलभद्दसामिस्स / कोसामणमत्तमहागइंदतिक्खंकुसस्स सया / / 611 // सो जयउ वइरसामी सोहग्गनिही अ लीलगयगामी / अवगनिअकुलकन्नो विसएसु परम्मुहो धन्नो // 612 // इअ पुवमुणिवराणं विसयविरत्ताग सुद्धचरिआणि / सुमरिज सलाहिज्जा जह कामतिसा उवसमेइ // 613 / / ताण नमो ताण नमो निच्चं चिय पुरिससीहसुहडाणं / अद्धच्छिपिच्छिरीओ जाण न हिअए खुडुक्कंति / / 614 / / ते चित्र पुरिसा धन्ना बालत्तणयंमि गहिअसामन्ना / विसयाणं अवगासो जेहिं न दिन्नो दुहावासो // 615 // मलमलिणजुण्णवत्थो कइआ हं धम्मझाणनुपसत्थो / विसएसु निप्पिवासो विहरिस्सं गच्छकयवासो // 616 // कइआ विसयमहाजरपरमोसहचरणकरणपरिणामो / विहरिस्सं विसहंतो बावीसपरीसहे धीरो // 617 // कइआहं विसयतिसा-पसमणं-सुस्समणवयणसिसिरजलं / घुटिस्समेगचित्तो सुसमयखीरोअहिसमुत्थं // 618 //

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