Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
View full book text
________________ सामी अविसेसन्न , अविणीओ परिअणो परवसत्तं / भज्जा ये अणणुरूवा, चत्तारि मणुस्ससल्लाइ // 500 // धण्णा बहिरा अन्धा, ते चिय जीअन्ति माणुसे लोए / न सुणन्ति पिसुणवयणं, खलाण दिलुि न पेक्खन्ति / / 501 // सम्मत्तं सामाइयं, संतोसो संजमो अ सज्झायं / पंच सकारा जस्स, न पयारो तस्स संसारे // 502 / / पच्चक्खाणं पूआ, पडिक्कमणं पोसहो परुवयारो / . पंच पयारा जस्स, न पयारो तस्स संसारे // 503 / / अक्खाण रसणी कम्माण मोहणी तह वयाण बंभवयं / गुत्तीण य मणगुत्ती, चउरो दुक्खेण जिप्पंति / / 504 // मज्जं विसय कसाया, निदा विगहा य पंचमी भणिआ / एए पंचपमाया, जीवं पाडंति संसारे // 505 // जीवदया जिणधम्मो, सावयजम्मो गुरुण पयभती / एअं रयणचउकं, पुण्णेहिं विणा न पावंति // 506 / / जत्थय विसय विराओ, कसायचाओ गुणेसु अणुराओ / किरियासु अप्पमाओ, सो धम्मो सिवसुहोवाओ // 507 // जिणसासणस्स सारो, चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो / जस्स मणे नवकारो, संसारो तस्स किं कुणइ // 508 // जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहिइ जिण नमुक्कारं / तित्थयरनामगोतं; सो बंधइ नत्थि संदेहो / / 509 // खती सुहाण मूलं, मूलं धम्मस्स उत्तमा खेती / हरइ महाविज्जा इव, खंती दुरियाई सव्वाइ // 510 //

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124