Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 54
________________ अइलज्जा अइमाणं, अइनीयालोयणं च अइभीरू / महिलाए न पुरिसस्स सीलसुद्धस्स लिंगाई // 474 // अपरिक्खियकयकज्जं, सिद्धं पि न सज्जणा पसंसति / सुपरिक्खियकयकज्जं, विहीं पि न जणेइ वयणिज्जं // 475 // भदएणेव होयव्वं, पावइ भद्दाणि भद्दओ / सविसो हण्णए सप्पो, भेरुंडो तत्थ मुच्चइ // 476 // इक्केण पि विणा माणुसेण सम्भावनेहभरिएण / जणसंकुला वि पुहवी, सव्वा सुन्न व्व पडिहाइ // 477 // इंदियचवलतुरंगा, दुग्गइमग्गाणुधाविरा निच्चं / उम्मग्गे निवडता; निरंभइ नाणरस्सीहिं // 488 // जह अग्गीइ लवो वि हु, पसरंतो दहइ गामनयराई। इक्विक्कमिदियपि हु, तह पसरंतं समग्गगुणे // 479 // नयण कहिज्ज पेम्मं, नयणे दोसपि परिफुडं कहइ / नयणे कहिज्ज कामं, नयणे वेरग्गमुवदिसइ // 480 // तस्स न हवेइ दुक्खं, कयावि जस्सत्थि निम्मल पुण्णं / अण्णधरत्थं दवां, मुंजइ अण्णो जणो जेण // 481 // जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ / अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राईओ // 482 // जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तइ / धम्मं च कुणमाणस्स, सहला जति राइओ // 483 // अणवट्ठियस्स धम्मं, मा हु कहिज्जा सुवि पियस्स / विच्छायं होइ मुहं, विज्झायग्गिं धमंतस्स // 48 //

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