Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ 44. दिवा कागाण बीहेसि, रत्तिं तरसि नम्मयं / कुतित्थाणि य जाणासि, अच्छीणं ढंकणाणि य // 440 // आवइगयंपि सुहए, हासेइ य गरुयसोगमहियं पि / मरमाणपि जियावइ, अवच्चसंजीवणी जीवं // 441 // 'धावंतखलंतपडतयाई धूलीए धूसरंगाई। 'धन्नाण रमंति घरंगणम्मि दो तिन्नि डिभाइ // 442 // सोलसवरिसो पुरिसो, लच्छि भुंजेइ जो उ जणयस्स / एसो नूणं पुत्तो, रिणसंबंधेण संपतो // 443 // रयणायरतीरपइ-ट्ठियाण पुरिसाण जं च दालिदं / सा रयणायरलज्जा, न हु लज्जा इयरपुरिसाणं // 444 // रयणनिरंतरभरिओ, तहवि हु रयणायरस्स मज्जाया / तेण जाइ उवमाणं, पढमं जलही गहीराणं // 445 // आकड्ढिऊण नीरं, रेवा रयणायरस्स अप्पेइ / न हु गच्छइ मरुदेसे, सब्वे भरियं भरिज्जत्ति // 446 // अगणिज्जंती नासे विज्जा दंडिज्जंती नासे पज्जा / कुद्धिज्जती नासे भज्जा, बहुबोल्लंती नासे लज्जा // 447 // कुवियस्स आउरस्स य, वसणासत्तस्स आयरत्तस्स / . मत्तस्स मरंतस्स य, सन्भावा पायडा हुंति // 448 // चंदकला छुरिमुंडियं, चोरियरमियं च थीजणे मंतो / 'एए गोविज्जता, जंति दिणे पायडा हुंति // 449 // नेरइआणवि दुक्खं, झिज्जइ कालेण किं पुण नराणं / न्ताः न चिरं तुह होही, दुक्खमिणं मा समुच्चियसु // 450 //

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