Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 16
________________ सक्को वि नेव खंडइ, माहप्पमडप्फरं जए जेसि / ते विं नरा नारीहिं, कराविया निययदासत्तं // 81 / / मरणे वि दीणवयण, माणधरा जे नरा न जंपन्ति / ते विहु करेन्ति लल्लिं, बालाण नेहगहगहिला ||82 / / उन्नयमाणा अक्खलिय-परक्कमा पण्डिया य जे केवि / महिलाए अंगुलीहि, नच्चाविज्जन्ति ते वि नरा / / 83 // सिंगारतरङ्गाए, विलासवेलाएँ जुव्यणजलाए / के के जयम्मि पुरिसा, नारीनईए न बुटुंति / / 84 // उन्भेउ अंगुलिं सो, पुरिसो महियलम्मि जीवलोगंमि / कामवसेण महिलँ, जेण न पत्ताइ दुक्खाई॥८५॥ धन्ना ता महिलाओ, जाणं पुरिसेसु कित्तिमो नेहो / पाएण जए पुरिसा, महुयरसरिसा सहावेणं // 86 // किं पेम्म को व पिओ, को विरहो केरिसी विसयतण्हा / एयमपुव्वं जासिं, नमो नमो ताण नारीग // 87 // गंगाए वालुयं सायरे जल हिमवओ य परिमाण / जाणन्ति बुद्धिमन्ता, महिलाहिययं न जाणन्ति // 88 रोवन्ति रूवायन्ति य, अलियं जंपन्ति पत्तियावेन्ति / कवडेण य खति विसं, मरन्ति न य जंति सम्भावं // 89 // महिला हु रत्तमेत्ता, उच्छूखण्डौं व सकरा चेव / सच्चिय विरत्तमेत्ता, निबं कूर विसेसेइ // 90 // अणुरज्जान्ति खणेण, खणेण पुणो विरज्जंन्ति / अन्नन्नरागनिरया, हलिद्दरागव्व चलपेम्मा // 11 //

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