Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 15
________________ तिणतूला पि हु लहुयं, दीणं दइवेण निम्मियं भुवणे / वाएण किं न नीयं, अप्पाणं पत्थणाभएणं // 71 // थरथरेइ हिययं, जीहा वोलेइ कण्ठमझम्मि / . नासेइ मुहलावण्णं, देहि त्ति परं भणन्तस्स // 72 // जे जे गुणिणो जे जे, वि माणिणो जे वियइढसंमाणा / दालिद्द रे वियक्खण, ताण तुमं साणुराओ सि // 73 // किं वा कुलेण कीरइ, किं वा विणएणः किं व रूवेण / धणरहियाण सुन्दरि, नराण को आयरं कुणइ / / 74 / / इह लोए चिय दीसइ, सग्गो नरओ य किं परत्तेण / धणविलसिआण सग्गो, नरओ दालिदिअजणाणं // 75 / / सगुणो वि निग्गुणो च्चिय, बुच्चए मुच्चए परियणेणं / पावइ विहवविहूणो, पए पए पराभवं पुरिसो // 76 // महिला / WOMEN गहचरियं देवचरियं, ताराचरियं चराचरे चरियं / जाणन्ति सयलचरियं, महिला चरियं न यागति // 77 // बहुकुडकवडभरिया, मायारूवेण रञ्जए हिययं / महिलाए सम्भावं, अञ्जवि बहवो न जाणति / / 78 // घेप्पइ मच्छाण पए, आयासे पकिखणो य पयमग्गो / एक नवरि न घेप्पइ, दुल्लक्खं कामिणीहिययं // 79 // . संसारे हयविहिणा, महिलारूवेण मंडियं पास / बुज्झन्ति जाणमाणा, अयाणमाणा न बुज्झति / / 8 / /

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