Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 37
________________ 30 . मच्चू / DEATH देविंदा समहिड्ड्यिा , दाणविंदा य विस्सुया / नरिंदा जे य विक्वंता, मरणं विवसा गया // 295 / / जं कल्ल कापव्वं, नरेण अज्जेव तं वरं काऊं। मच्चू अकरुणहिययो, न हु दीसइ आवडतोवि // 296 / / सोसन्ति जे वि उदहि, मेरु भजन्ति मुट्ठिपहरेहिं / कालेण ते वि पुरिसा, कयन्तषयणं चिय पविट्ठा // 297 / / मायपियपुत्तबंध, सयलकुसलाइआई कारेन्ति / न मरंतस्सुवयारं, तिलतुसमिपि हु जणन्ति // 298 // 'धीरेणवि मरियब्वं, काउरिसेण वि अवस्समरियव्वं / दुण्डंपि हु मरियव्वे, वरं खुधीरत्तणे मरिऊं // 299 // सा नत्थि कला तं नत्थि ओसहं तं नत्थि किंपि विनाणं / जेण धरिजइ काया, खज्जंती कालसप्पेणं // 30 // दीहरफणिंदनाले, महीयरकेसर दिसामहदलिल्ले / आवीयइ कालभमरो, जणमयरंदं पुहविपउमे // 301 // छायामिसेण कालो, सयलजीवाणं छलं गवेसंतो / 'पासं कहवि न मुंचइ, ता धम्मे उज्जमं कुणह // 302 // जाणन्तो मरणन्त, देहावास असासयमसार। को उव्विएज्ज नरवर, मरणस्स अवस्स गंतव्वे // 303 // गम्भपभिइमावीई; सलिलच्छेए सरं व सूसन्तं / अणुसमयं मरमाणं, जियइ त्ति जणो कह भणइ // 304 //

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