Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 44
________________ 37 भुंजइ भुंजाविज्जइ, पुच्छिज्ज मणोगयं कहिज्ज सयं / दिज्जइ लिज्जइ उचिअं, इच्छिज्जइ जइ थिरं पेम्मं // 366 // कोवि न अवमनिज्जइ, न य गविज्जइ गुणेहि निअएहिं / न विम्हओ वहिज्जइ, बहुरयणा जेणिमा पुहवी // 367 // आरंम्भिज्जइ लहुयं, किज्जइ कज्जं महंतमवि पच्छा / न य उक्करिसो किज्जइ, लम्भइ गुरुअत्तणं जेण // 368 // साइज़्जइ परमप्पा, अप्पसमाणो गणिज्जइ परो। किज्जइ न रागदोसो, छिन्निज्जइ तेण संसारो // 369 // अणथोत्रं बणथोवं, अग्गीथोवं कसायथोवं च / न हु भे वीससियव्वं, थोपि हु तं बहु होइ // 370 // मा सुयह जग्गिअव्वे, पलाइयवम्मि कीस वीसमेह / तिण्णि जणा अनुलग्गा, रोगो य जरा य मच्चु य // 371 // अह दुक्खियाई तह भुक्खियाइ जह चिंतिआई डिंभाई। तह थोपि न अप्पा, विचिंतिओ जीव किं भणिओ // 372 // निसाविरामे परिभावयामि, गेहे पलिते किमहं सुयामि / डझंतमप्पाणमुवेक्खयामि, जं धम्मरहीओ दिअहा गमामि / / 373 // प्रकीर्णपद्यानि / MISCELLANEOUS कोहो पाइपणासेइ, माणो विणयनासणो / माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो // 374 / / चयंति मित्ताणि नरं कयग्धं, चयंति पावाई मुणिंजयन्तं / चयंति सुक्कणि सराणि हंसा, चएइ बुद्धी कुवियं मणुस्सं // 375 //

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