Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 46
________________ को इत्थ सया सुहिओ, कस्स व रिद्धी थिराइ पेम्माइ। कस्स न होइ पलियं, को गिद्धो णेव विसएसुं // 385 // मज्जं विसयकसाया, निद्दा विकहा य पञ्चमी भणिया / एए पंच पमाया, जीवं पाडेंति संसारे // 386 // जो कुणइ नियमभंगं, जो विअ कारेइ कहवि दुब्बुद्धिं / ते दोवि हुन्ति दुहलक्खभायणं भीमभवगहणं // 387 // अइलालिया वि अइपालिया वि विहडंति सेसया सयणा / हुंति सहिज्जा विहुरे, कुविया वि. सहोअरा चेव // 388 // अभयं सुपत्तदाणं, अणुकंपा उचियकित्तिदाणं च / दोहिं वि मुक्खो भणिओ, तिन्नि वि भोगाइ दिति // 389 / / विणओ आवहइ सिरिं, लहेइ विणओ जसं च कित्तिं च / न कयावि दुव्विणीओ, सकज्जसिद्धिं समाणेइ // 390 / / विणयाओ हु नाणं, नाणाओ दंसणं तओ चरणं / चरणेहिं तो मोक्खो, मोक्खे सुक्खं अणावाहं // 391 // मेहाण जलं चंदाण चंदिमा' तरुवराण फलनिवहो / सुपुरिसाण य रिद्धी, सामन्नं सयललोयस्स // 392 / / निहणंति धणं धरणी-यलंमि इय जाणिऊण किविणजणा / पायालं गन्तव्यं, ता गच्छ अग्गठाणं पि // 393 // मुत्तिसमं नत्थि सुह, नरयसमाणं महं दुहं नत्थि / घंभसमं नत्थि वयं, सज्झायसमो तवो नत्थि // 394 / / विणए सीसपरिक्खा, सुहडपरिक्खा य होइ संगामे / वसणे मित्त परिक्खा, दाणपरिक्खा य दुकाले // 395 / /

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