Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 40
________________ 33 मा जाणसि जीव तुमं, पुत्तकलत्ताइ मज्झ सुहहेऊ / निउणं बंधणमेयं, संसारे संसरंताणं // 325 // जीवो वाहिविलुत्तो, सफरो इव निजले तडप्फडइ / सयलो वि जणो पिच्छइ, को सक्को वेअणाविगमे // 326 // तं कंपि नत्थि ठाणं, लोए वालग्गकोडिमित्तंपि / जत्थ न जीवा बहुसो, सुहदुक्खपरंपरा पत्ता // 327 // जम्मदुक्खं जरादुक्खं, रोगा य मरणाणि य ! अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतुणो // 328 // वसियं गिरीसु वसियं, दरीसु वसियं समुद्दमज्झम्मि / रुक्खग्गेसु अ वसियं, संसारे संसरंतेणं // 329 // जावंति केइ दुक्खा, सारीरा माणसा व संसारे। पत्तो अणंतखुत्तो, जीवो संसारकंतारे // 330 // संसारो दुक्खहेऊ, ‘दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य / न चयंति तंपि जीवा, अइबद्धा नेहनिअडेहिं // 331 / / नियकम्मपवणचलिओ, जीवो संसारकाणणे घोरे / का का विडवणाओ, न पावए दुसहदुक्खाओ // 332 // सोच्चिय कज्जवसेणं वल्लहओ होइ एत्थ संसारे / कारणवसेण सो वि हु रिउव्व वेसो जणो होइ // 333 // परमत्थओ न कोवि हु, पिओ व सत्तू व अत्थि लोगम्मि / नइ माया नेव पिया, सकज्जवसओ जणो सव्वो // 334 // पुत्तोवि सत्तसरिसो, दीसइ नियकारणे अपुज्जते / पिउणा सुविणीओ वि हु, धिरत्थु संसारवासस्स // 335 / /

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