Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 31
________________ 24 . धम्मो बंधु सुमित्तो य धम्मो यु परमो गुरु / मुनखमग्गे पयट्टाण धम्मो परमसंदिणो // 23.5 // धिद्धी ताण नराणं विन्नाणे तह गुणेसु कुसलतं / सुहसच्चधम्मरयणे सुपरिक्खं जे न याणन्ति // 236 // मरणभयम्मि उवगए देवावि सईदया न तारेति / धम्मो ताणं सरणं गइत्ति चिंतेहि सरण // 237 // दाणं / CHARITR , दाणेण फुरइ कित्ती, दाणेण य होइ निम्मला कंती / दाणावज्जियहिययो, अरिणो विय पाणियं वहइ / / 238 // आरुग्णं सोहग्गं, आणेसरियं मणिच्छिओ विहवो / सुरलोयसंपया विय, सुपत्तदाणाइदुमफला // 239 / / एकमि जह तलाए, धेणुयसप्पेण पाणिय पीयं / सप्पे परिणमइ विस, घेणूसु खीरं समुभवइ // 240 // तह निस्सीलसुसीले, दिन्नं दाणं फलं अफलयं च / होही परम्मि लोए, पत्तविसेसेण से पुण्णं // 241 / / दिन्नं सुहंपि दाणं, होइ कुपत्तंम्मि असुहफलमेव / सप्पस्स जहा दिन्नं, खीरंपि विसत्तणं उवेइ // 242 // . तुच्छंपि सुपत्रांमि उ, दाणं नियमेण सुहफलं होई।। जह गावीए दिन्नं, तिग पि खीरत्तणमुवेइ // 243 //

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