Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 34
________________ 27 गुणमहिमा / IMPORTANCE OF MERITS जई होन्ति गुणा ता किं, कुलेण गुणिणो कुलेण न हि कज्ज / कुलमकलंकं गुणवजिजाण गरुयं त्रिय कलंकं // 264 // गुणहीणा जे पुरिसा, कुलेण गव्वं वहति ते मूढा / वसुप्पन्नो वि धणू, गुणरहिए नत्थि टंकारो // 265 / / जम्मतरं न गरुय, गरुयं पुरिसस्स गुणगणारुहणं ! मुत्ताहलं हि गरुयं न हु गरुयं सिप्पिसंपुडयं // 266 // खरफरुस सिप्पिउड, रयणं तं होइ जं अणग्धेयं / जाईए किं व किज्जइ, गुणेहिं दोसा फुसिज्जन्ति // 267 / / जं जाणइ भणइ जणो, गुणाण विहवाण अन्तरं गरूयं / लब्भइ गुणेहि विहवो, विहवेहि गुणा न घेष्पन्ति // 268 / / ठाणं गुणेहि लन्भइ, ता गुणगहण अवस्स कायव्य / हारो वि नेय पावइ, गुणरहिओ थणवट्ट // 269 / / पासपरिसंठियस्स वि, गुणहीणस्स किं करेइ गुणवंतो / जायन्धयस्स दीको हत्थगओ निष्फलो चेव // 27 // परलोयगयाण पि हु, पच्छत्ताओ न ताण पुरिसाण / जाण गुणुच्छाहेण, जियन्ति वंसे समुप्पन्ना // 271 / / निग्गुण गुणेहि नियअ-गुणत्तणं देहि अह्म इड्ढीए / कलिकाले किं कीरइ, गुणेहि पहुणो न घेप्पन्ति // 272 / / dah l A HARLOT कुडिलत्तणं च वंकत्तणं च वंचत्तण च असच्चं च / अन्नाग हुन्ति दोसा, वेसाण पुण अलंकारा // 273 //

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