Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 19
________________ 12 सव्वत्थ निरणुक्कोसा, निविसेसं पहारिणी / सुत्तमत्तपमत्ताणं एगा जग्गि आणिच्चया // 113 // जललवतरलं जीय, अथिरा लच्छी विभंगुरो देहो / तुच्छा य कामभोगा, निबंधगं दुक्खलक्खागं // 114 // लच्छी सहावचवला, तओ वि चवलं च जीवियं होइ / .. देहो तो वि चवलो, उबयारविलंबना कीस // 115 // / चंदस्स खओ नहु तारयाग रिद्धी वि तस्स न हु ताणं / गुरुआण चडणपडणं, का कहां निच्चपडियाग // 116 // उदओ भुवणक्वमण अत्थमण चेय एगदिवसंमि / सूरस्स वि तिनि दसा, का गणणा इयरलोगस्स // 117 // गयकण्णतालसरिसं, विज्जुलयाचंचलं हवइ जीयं / सुमिणसमा होन्ति इमे, बन्धुसिणेहा य भोगा य // 118 // खणभंगुरे सरीरे, का एत्थ रई सभावदुग्गन्धे / नरयसरिच्छे घोरे, दुगुंछिए किमिकुलावासे // 119 / / मणुसत्तगं असारं, विज्जुलयाचंचलं हाइ जी / बहुरोगकिमिकुलभायणभूयं हवइ देह // 120 // इन्दधणुफेणसुविणय-विज्जुलयाकुसमबुब्बुयसरिच्छा / इट्ठजणसंपओगा, विभवा देहा य जीवागं // 121 // . सुठु वि भुत्ता भोगा, सुठुवि रमिअं पियएहि समं णिच्च / सुठुवि पियं सरीरं, हा जीव कझ्या वि मुत्तब्धं // 122 // अज्ज कल्लं परं परारिं, पुरिसा चिंतंति अत्थसंपत्तीं। . अंजलिगयं व तोयं, गलंतमाउंन पिच्छन्ति // 123 //

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