Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ धन्ना ते चिय पुरिसा, जयमि जी च ताण सुकयत्थं / जे मुत्तिरमणिरत्ता, विरत्तचित्ता परत्थीस // 153 // जा नियकंत मुत्तु, सुमिणे वि न ईहए नरं अन्नं / आबालबंभयारिव्य सा रिसीण पि मवणिज्जा // 154 // तारुण्णे पियविरहे महुसमये बहुजुयाणअणुसंगे / जा नियसील रक्खइ, महासई सावि बहुपुज्जा // 155 / / हारो भारो रसणाइ बंधणं नेउराइ निउलाइ / सीलरयणाए जीए, जुवईए न भूसियं अंगं // 156 // : जा नारी इह लोए, सील खंडेइ कामगहगहिया / सा लोहमयपुरिसेण, नरए आलिंगणं देइ // 157 / / सील चिय महिलाणं, विभूसणं सीलमेवं सव्वस्सं / सील जीवियसरिसं, सीलाओ नसुदरं किंपि // 158 // मइलइ विमलपि कुलं, हीलिज्जइ पागएणावि जणेणं / पडइ दुरन्ते नरए, पुरिसो परनारिसंगेण // 159 // उच्छि8 विलु पिव परनारिं परिहरन्ति सप्पुरिसा। सेवंति सारमेयव्व निंदिया जे दुरायारा // 160 // जो देइ कणगकोडिं, अहवा कारेइ कणयजिणभवणं / तस्स न तत्तियपुण्णं, जत्तिय बंभव्यए धरिए // 161 // सील वर कुलाओ, दालिद्द भव्वयं च रोगाओ। विज्जा रज्जाउ वर, खमा वर सुट्ठ वि तवाओ // 162 / / सील वरं कुलाओ, कुलेण किं हाइ विगयसीलेण / - कमलाइ कद्दमे संभवन्ति न हु हुंति मलिणाडू // 163 //

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