Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 22
________________ 15 15 जं नत्थि तं पलोयइ, जं विज्जइ तं न पिच्छइ पयत्थं / अहह अहो अपुब्वं, तिमिरं मिहिरुग्गमे मयणो // 145 / / ता लज्जा ता माणो, ताव य परलोयचिंतणे बुद्धी / जा न विवेयजियहरा, मयणस्स सरा पहुप्पन्ति // 146 // सल्लं' कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा / कामे अ पत्थेमाणा, अकामा जति दुग्गइं // 147 // विसयसुहेसु पसत्तं, अबुहजण कामरागपडिबद्धं / उक्कामयंति जीव, धम्माओ तेग ते कामा // 148 // खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा / संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खागी अणत्थाग उ कामभोगा // 149 // सब विलविय गीय, सवं नट्ट विडंबणा / सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा // 150 // pofitis i GOOD CONDUCT मेरू गरिठ्ठो जह पब्वयाण, एरावणो सारबलो गयाण / सिंहो बलिट्ठो जह सावयाण, तहेव सील पवरं वयाण // 15 // जो इहलोए पुरिसो, सील खंडेइ कामरसगिद्धो / सो तत्ततंबपुत्तलिसमं, नरगे आलिंगण देइ. // 152 //

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