Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 24
________________ 17 भूसणरहिया वि सई, तीए सीलं तु मण्डणं होइ / सीलविणाएँ पुणो, वरं खु मरण महिलियाए // 164 // सील कुलआहरण, सील रूवं च उत्तमं होइ / सील चिय पण्डितं, सील चिय निरुवमं धम्म // 165 // हत्थपायपडिच्छिन्नं, कण्णनासविकप्पिय / अवि वाससयौं नारिं, बंभयारी विवज्जए // 166 // जहा कुक्कडपोअस्स, निच्चं कुललओ भयं / एव खु बंभयारिस्स, इत्थीविग्गहओ भयं // 167 // चित्तभित्ति न निज्झाए, नारिं वा सुअल कियं / भक्खरं पिव दट्टण, दिहि पडिसमाहरे // 168 // देब्बं / FATE जं चिय विहिणा लिहियं, तं चिय परिणमइ सयल लोयस्स / इय जाणिउण धीरा विहूरे वि न कायरा हुंति // 169 // तत्तिल्लो विहिराया, जाणइ द्रवि जो जहिं बसइ / जं जस्स होइ जुग्गं, तं तस्स बिइज्जयं देइ // 170 // जम्मो कलिंगदेसे, पाणिग्गहणं मरुयदेसमज्झम्मि / मरण समुद्दतीरे, अज्जपि भविस्सए किं पि // 171 // पत्ते वसतमासे, रिद्धिं पावंति सयलवणराई / जं न करीरे पत्तं, ता कि दोसो वसंतस्स // 172 // वाएण बलेण पर-कमेण मंतोसहाइजुत्तीहि / विउसेहि वि कवीहिं वि य, न तीरए अन्नहा काउं // 173 //

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