Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala
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________________ . 11 रत्ताओ हरंति धण, पाणेवि हरंति तह विरत्ताओ। रागे वि विरागे विय, भयंकरा दुट्ठजुवईओ // 103 // अन्नं चिंतेंति मणे, नियति अन्नं घडेन्ति अन्नेण / चलचित्ताण ताण, को नाम हविज्ज वल्लहओ // 104 // किंबहुणा भणिएण, जाओ य हणति निययपुत्रापि / को नाम पिओ तासिं, हविज्ज चवलाण महिलाण // 105 / / जह विसमीसं सरसपि भोयण जीवियं हरइ भुत्तं / तह सुन्दरावि रमणी, रभिया नणु दोग्गई देइ // 106 // जं चित्ते चिंतेउं, जं न सुविणेवि पेच्छिउँ सक्कं / लीलावईण लीला-बावारो तम्मि कज्जमि // 107 / / मच्छपयं जलमज्झे, आगासे पक्खियाण पयपंती / महिलाण हिययमग्गो, तिन्निवि बिरला पयं पंति // 108 // . संतमसंतं दुक्खं, सुहं च जाओ घरस्स जाणति / ता पुत्तअ महिलाओ, सेसाओ जरा मणुस्साणं // 109 / / अणिच्चया / TRANSORINESS सव्वेसिं अणिच्चत्तं जुब्बणधणसयणपुत्तदाराण / देहस्स जीवियस्स य, इकंपि न पिच्छए निच्चं // 110 // जुव्वण रूवसंपत्ती, सोहग्गं धणसंपया / जीवियं वा वि जीवाण, जलबुब्बुअसंनिहं // 111 // दाणमाणोक्यारेहिं, सामभेआइएहि य / न सक्का सा निवारेउ, तेलुक्केण अणिच्चया // 112 //

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