Book Title: Paia Subhasiya Sangaho
Author(s): Bhavyadarshanvijay
Publisher: Padmavijay Ganivar Jain Granthmala

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Page 14
________________ 7 वणिआणं वणिज्जम्मि, माहणाण मुहम्मि य / / खत्तिआण सिरी खग्गे, कारूण सिप्पकम्मसु // 61 // पुरिसेण माणधणवज्जिएण अच्चंताजेण्णविहवेण / ते देसा गंतव्वा, जत्थ सवासा न दीसन्ति // 62 / / किं तीऍ सिरीए सुंदरी वि जा होइ अन्नदेसम्मि / जाइ न मित्तेहिं समं, जाय न दिट्टा अमित्तेहिं / / 63 / / किं तीऍ सिरीए पीवराए छन्नाएं गेहनिहिआए / विप्फुरइ जए न जओ, मियंककिरणुज्जला कित्ती // 64 // तायविढत्ता लच्छी, नूण पुत्तस्स होइ सा भइणी / होइ परस्स परित्थी, सयं विढत्ता तओ जुत्ता // 65 / / अणवरयं देन्तस्स वि, तुट्टन्ति न सायरे वि रयणाई। पुण्णक्खएण झिज्जइ, न हु लच्छी चायभोएणं // 66 // लच्छीए विणा रयणायरस्स गंभीरिमा तहच्चेव / सा लच्छी तेण विणा, भण करस न मंदिरं पत्ता // 67 / / जस्सत्थो तस्स सुह, जस्सत्थो पण्डिओ य सो लोए / जस्सत्थो सो गुरुओ, अत्थविहूणो य लहुओ य // 68 / / सव्वेसिं सत्ताण, खणीयं पि हु दुक्खमेत्तपडियारं / जा न करेइ नणु सह, लच्छी को ती पडिबन्धो // 69 // . .. दारिदं / POVERTY ता रूवं ताव गुणा, लज्जा सच्चं कुलक्कमो ताव / तावच्चिय अहिमाणो, देहि ति न भण्णए जाव // 7 //

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