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अन्यतर शब्दका अर्थ यहांपर क्या है ? तो दोनों से एक ही प्रमाण है ऐसा भावार्थ ही सिद्ध होगा, और दोनोंमेसे किसी एकको प्रमाण माननेपर, लक्षण परस्पर अव्याप्त हो जायगा-अर्थात् करणको प्रमाण माननेपर अधिकरणमें लक्षण घटित नहीं होगा तथा अधिकरणको प्रमाण माननेपर, करणरूप प्रमाणमें लक्षण घटित नहीं होगा। । अन्यान्यपि पराभिमतानि प्रमाणस्य सामान्यलक्षणान्यलक्षणत्वादुपेक्ष्यन्ते । तस्मात्स्वपरावभासनसमर्थ सविकल्पमगृहीतग्राहकं सम्यग्ज्ञानमेवाज्ञानमर्थे निवर्तयत्प्रमाणमिसाहेतं मतम् ।
प्रवादियोंके माने हुए प्रमाणके और भी अनेक सामान्य लक्षण हैं परन्तु वे सभी अव्याप्त्यादि दोषोंसे दूषित हैं; इसलिये उन्हें छोड़ते हैं । अतः अपने और पर पदार्थके खरूपका प्रकाश करनेमें समर्थ, सविकल्पक, अगृहीत पदार्थका ग्रहण करनेवाला, सम्यग्ज्ञान ही आर्हतमतके अनुसार प्रमाण है यह सिद्ध हुआ। क्योंकि उसीसे वस्तुखरूपका अज्ञान दूर हो सकता है।
इति प्रथमः प्रकाशः।
अथ द्वितीयः प्रकाशः। अथ प्रमाणविशेषस्वरूपप्रकाशनाय प्रस्तूयते-प्रमाणं द्विविधं प्रत्यक्षं परोक्षं चेति ।
प्रथम प्रकाशमें प्रमाणसामान्यका स्वरूप कहकर इस दूसरे प्रकाशमें प्रमाणविशेषके स्वरूपका प्रकाश करते हैं । उस पूर्वोक्त प्रमाणके दो भेद है-एक प्रत्यक्ष, दूसरा परोक्ष ।