Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 54
________________ नाक्षेभ्यः परावृत्तं परोक्षमित्यपि प्रतिविहितम् । अवैशवस्यैव परोक्षलक्षणत्वात् । (प्रश्न) इनको प्रत्यक्षशब्दसे क्यों कहते हैं ? अर्थात् अवधि आदि ज्ञान जब अपनी उत्पत्तिमें अक्ष अर्थात् इन्द्रियोंकी अपेक्षा ही नहीं रखते तो इनको प्रत्यक्ष क्यों कहते हैं ? (उत्तर) रूढिसे, अर्थात् इन शानोंमें प्रत्यक्ष शब्द अपने यौगिक अर्थकी अपेक्षा न करके रूढ है इसलिये इनको प्रत्यक्ष कहते हैं । अथवा अक्षशब्दका अर्थ आत्मा भी होता है, क्योंकि यह शब्द अक्ष धातुसे बना है जिसका अर्थ होता है किसी पदार्थको व्याप्त करना अर्थात् जानना । इसलिये उस (अक्ष-आत्मा)की अपेक्षासे ही केवल जिसकी उत्पत्ति हो उसको प्रत्यक्ष कहते हैं। ऐसा अर्थ करनेसे क्या बिगड़ता है ? कुछ नहीं । (प्रश्न)-यदि ऐसा है तो इन्द्रियजन्य ज्ञान अप्रत्यक्ष ठहरा? (उत्तर) बच्चा (प्रश्नकर्ता) बहुत जल्दी भूल जाता है यह बड़ा खेद है । हम यह बात पहले कह चुके हैं कि “इन्द्रियजन्य ज्ञान उपचारसे प्रत्यक्ष कहा जाता है" इसलिये वह अच्छीतरह अप्रत्यक्ष ठहरो, हमारी कुछ हानि नहीं है । इस पूर्वोक्त कथनसे यह कहना भी खण्डित होगया कि "जो ज्ञान इन्द्रियोंकी अपेक्षासे रहित है वह परोक्ष है" क्योंकि परोक्षका लक्षण विशदतारहित होना ही है। स्यादेतत् 'अतीन्द्रियं प्रत्यक्षमस्तीत्यतिसाहसमसम्भावितत्वात् । यद्यसम्भावितमपि कल्प्येत गगनकुसुमादिकमपि कल्प्यं स्यात् । न स्याद्गगनकुसुमादिरप्रसिद्धत्वात् अतीन्द्रियप्रत्यक्षस्य तु प्रमाणसिद्धत्वात् । तथाहि । केवलज्ञानं तावत्कि. १ जो शब्द अपने प्रकृतिप्रत्ययसे होनेवाले अर्थकी अपेक्षा न रखकर किसी खास वस्तुका वाचक हो उसको रूढ कहते हैं। जैसे गोशब्द का अर्थ यद्यपि चलनेवाला होता है तथापि वह चलनेवाले मनुष्यादिकोंको न कहकर बैठे हुए बैल या गौको भी कहता है।

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