Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 106
________________ पञ्चसु मैत्रपुत्रेषु श्यामतामुपलभ्य तद्गर्भगतमपि विवादापन पक्षीकृत्य श्यामत्वसाधनाय प्रयुक्तो मैत्रतनयाख्यो हेतुराभास इति तावत्प्रसिद्धम् । अश्यामत्वस्यापि तत्र सम्भावितत्वात् । तत्सम्भावना च श्यामत्वं प्रति मैत्रतनयत्वस्यान्यथानुपपत्त्यभावात् । तदभावश्च सहक्रमभावनियमाभावात् । _ और भी यह एक दोष है कि,गर्भस्थ मैत्रपुत्र श्याम होगा, क्योंकि मैत्रका पुत्र है, जो जो मैत्रपुत्र हैं वे वे श्याम हैं, जैसे वर्तमानके मैत्रपुत्र । यहांपर ( हेत्वाभासमें) भी बौद्ध और यौगोंके मानेहुए हेतुके रूप्य और पाश्चरूप्य लक्षण घटित होते हैं इसलिये इस लक्षणमें अतिव्याप्ति दोष आता है। क्योंकि वर्तमानके पांचों मैत्रपुत्रोंमें श्यामताको देखकर विवादापन्न गर्भप्राप्त पुत्रको पक्ष बनाकर उसमें श्यामता सिद्ध करनेकेलिये कहाहुआ मैत्रतनयत्वरूप हेतु, हेतु नहीं है, किंतु हेत्वाभास है, यह बात प्रसिद्ध है। क्योंकि उसके श्याम न होनेकी भी सम्भावना है; यह भी क्योंकि श्यामत्वके प्रति मैत्रतनयत्वकी अन्यथानुपपत्ति नहीं हैं-अर्थात् यह नियम नहीं है कि श्यामत्वके विना मैत्रतनयत्व न हो अथवा जो जो मैत्रतनय हो वह वह श्याम ही हो यह नियम नहीं होसकता। यहांपर अन्यथानुपपत्तिका अभाव तो सहभाव या क्रमभावरूप नियमके न बननेसे ही मानना पड़ता है। __ यस्य हि धर्मस्य येन धर्मेण सहभावनियमः स तं गमयति, यथा शिंशपात्वस्य वृक्षत्वेन सहभावनियमोस्तीति शिंशपात्वहेतुवृक्षत्वं गमयति । यस्य येन क्रमभावनियमः स तं गमयति, यथा धृमस्याम्यनन्तरभावनियमोस्तीति धूमोनिं गमयति। नहि मैत्रतनयत्वस्य हेतुत्वाभिमतस्य श्यामत्वेन साध्यत्वाभिमतेन सहभावः क्रमभावो वा नियमोस्ति, येन मैत्रतनयत्वं हेतुः श्यामत्वं साध्यं गमयेत् ।

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