Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 126
________________ तच्च कारणं न तावन्मैत्रतनयत्वं विनापि तदिदं पुरुषान्तरे श्यामत्वदर्शनात् । न हि कुलालचक्रादिकमन्तरेणापि सम्भविनः पटस्य कुलालादिकं कारणम् । एवं मैत्रतनयत्वस्य श्यामत्वं प्रत्यकारणत्वे निश्चिते यत्र यत्र मैत्रतनयत्वं न तत्र तत्र श्यामत्वं किन्तु यत्र यत्र श्यामत्वस्य कारणं विशिष्टनामकमानुगृहीतशाकाद्याहारपरिणामस्तत्र तत्र तस्य कार्य श्यामत्वमिति सामग्रीरूपस्य विशिष्टनामकर्मानुगृहीतशाकाद्याहारपरिणामस्य श्यामत्वं प्रति व्याप्यत्वम् । स तु पक्षे न निश्चीयते इति सन्दिग्धासिद्धः । मैत्रतनयत्वं त्वकारणत्वादेव श्यामत्वं कार्य न गमयेदिति । • यह दृष्टान्त आगेके विचारसे इस प्रकार बाधित होजाता है कि श्यामरूप कार्य जो कि साध्य माना गया है, अपनी सिद्धिमें कारणकी अपेक्षा करता है। उसका कारण मैत्रतनयत्व नहीं हो सकता, क्योंकि मैत्रतनयत्वके विना भी दूसरे पुरुषोंमें अर्थात् जो मैत्रके पुत्र नहीं हैं, श्यामता देखनेमें आती है। जिस प्रकार कुंभार, चाक आदिके विना ही उत्पन्न होनेवाले वस्त्रका कारण कुंभार आदि नहीं होते, उसी प्रकार श्यामताका कारण मैत्रतनयत्व नहीं हो सकता यह निश्चय है। इसलिये यह नियम नहीं है कि जहां जहां मैत्रतनयत्व हो वहां वहां नियमसे श्यामता हो। किन्तु जहां जहांपर एक प्रकारके नामकर्मके उदयसे, प्राप्त शाकादिकका आहार.. रूप परिणाम श्यामताका कारण होगा अर्थात् श्यामताका अभ्यतरकारण श्यामवर्ण नामक नामकर्मका उदय और बाह्य कारण शाकादिका आहार हो सकता है, वह जहां होगा वहां वहां नियमसे उसका कार्य श्यामत्व अवश्य होगा । इसलिये सामग्रीरूप नामकर्मविशेषसे फलित शाकादिका आहाररूप परिणाम ही श्यामत्वके प्रति व्याप्य है, परन्तु उसका पक्षमें निश्चय

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