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मानकालवर्ती वस्तुस्वरूप है उसको अर्थ पर्याय कहते हैं । इसीको आचार्यांने ऋजुसूत्रनयका विषय कहा है । इसी वस्तुके एक देशका अवलम्बन करनेसे बौद्धमतावलम्बी क्षणिकवादी कहे जाते हैं । जिससे प्रवृत्ति निवृत्तिके लिये कारणभूत जलाहरणादिक प्रयोजन साधक क्रिया होसके उसको व्यञ्जन अथवा व्यक्ति कहते हैं, और इससे युक्त जो पर्याय उसको व्यञ्जनपर्याय कहते हैं । जैसे मिट्टी के स्थास कोश कुसूल घट कपालादिरूप व्यञ्जनपर्याय हैं। जिस तरह घटादिक दृष्टान्त, पुद्गलद्रव्यसंबंधी कहे उसी तरह आत्मादिक अन्य द्रव्योंके भी दृष्टान्त समझलेना चाहिये ।
यावद्द्रव्यभाविनः सकलपर्यायानुवर्तिनो गुणाः । वस्तुत्वरूपरसगन्धस्पर्शादयः । मृद्रव्यसम्बन्धिनो हि वस्तुत्वादयः पिण्डादिपर्यायाननुवर्तन्ते, न तु पिण्डादयः स्थासादीन् । तत एव पर्यायाणां गुणेभ्यो भेदः । यद्यपि सामान्यविशेषौ पर्यायौ तथापि सङ्केतग्रहणनिबन्धनस्य शब्दव्यवहारविषयत्वा(दा) गमप्रस्तावे तयोः पृथनिर्देशः । तदनयोर्गुणपर्याययोर्द्रव्यमाश्रयः “ गुणपर्ययवद् द्रव्यम्" इति आचार्यानुशासनात् । तदपि सवमेव "सखं द्रव्यम्" इत्याकरजवचनात् ।
जो द्रव्यके सम्पूर्ण प्रदेशों में रहते हैं तथा जिनका अनुवर्तन सम्पूर्ण पर्यायोंमें होता है उनको गुण कहते हैं । जैसे वस्तुत्व, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श इत्यादि । वस्तुत्वादिक गुण मिट्टी के सम्पूर्ण प्रदेशों में रहते हैं और पिण्डादिक उत्तरोत्तर पर्यायों में उनका अनुगमन भी होता है, इसलिये इनको गुण कहते हैं । किन्तु पिण्डादिक पर्यायोंका स्थासादिक पर्यायोंमें ऐसा अन्वय नहीं होता इसलिये इनको गुण नहीं कहते । इसीलिये गुण और पर्यायोंमें परस्पर भेद है । यद्यपि सामान्य और विशेष ये दोनों पर्याय ही हैं; तथापि जिस पदार्थमें जिस शब्द के इस नियमानुसार