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अपेक्षा करनेपर वस्तु एक अनेक और अवक्तव्य है। इस प्रकार नयोंके लगाने या समझनेकी प्रक्रियाको ही सप्तभङ्गी कहते हैं । वस्तुके स्वरूपका भेद यहां पर भङ्ग शब्दका अर्थ है । क्योंकि सप्तभङ्गी शब्दकी सिद्धि इस प्रकार की है कि सात भङ्गोंके समुदायको ही सप्तभङ्गी कहते हैं ।
नन्वेकत्र वस्तुनि सप्तानां भङ्गानां कथं सम्भव इति चेत्, यथैकस्मिन् रूपवान् घटः रसवान् गन्धवान् स्पर्शवानिति पृथग्रव्यवहारनिबन्धना रूपत्वादिस्वरूपभेदाः सम्भवन्ति तथैवेति सन्तोष्टव्यमायुष्मता । एवमेव परमद्रव्यार्थिकनयाभिप्रायविषयः परमद्रव्यसत्ता, तदपेक्षयैकमेवाद्वितीयं ब्रह्म, नेह नानास्ति किंचन, सद्रूपेण चेतनानामचेतनानां च भेदाभावात् , भेदे तु सद्विलक्षणत्वेन तेषामसत्त्वप्रसङ्गात् । . (प्रश्न) एक वस्तुमें सातों भङ्ग किस प्रकार सम्भव हो सकते हैं ? (उत्तर) जिस प्रकार यह घट रूपवान् , रसवान्, गन्धवान् तथा स्पर्शवान है, इस तरह एक ही घटमें भिन्न भिन्न व्यवहारके कारणभूत रूपत्वादिकका भेद सम्भव है उसी प्रकार सप्तभङ्गीमें भी आपको सन्तोष करना चाहिये । अर्थात् अनेक गुण या धर्मोकी अपेक्षासे द्रव्यमें सप्तभङ्गीकी प्रवृत्ति होती है । इसी प्रकार परमद्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षाका विषय परमद्रव्य सत्ता है । इसीकी अपेक्षा एक अद्वितीय ब्रह्म ही है, उसके सिवा ये नाना पदार्थ कुछ नहीं हैं । क्योंकि सद्रूपकी (अस्तित्वकी) अपेक्षा चेतन या अचेतन पदार्थों में कोई भेद नहीं है। यदि अस्तित्वसे भी उनका भेद माना जाय तो एक सत्से दूसरा वि. लक्षण होनेके कारण वह असद्रूप (अभावरूप) ठहरने लगे।
ऋजुसूत्रनयस्तु परमपर्यायार्थिकः । स हि भूतत्वभविष्यचाभ्यामपरामृष्टं शुद्धवर्तमानकालावच्छिन्नं वस्तुरूपं परा