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१३४ 'कथंचित् एकांतता' मिथ्या नहीं हो सकती है, क्योंकि जो नय निरपेक्ष हैं वे सब मिथ्या हैं और जो नय सापेक्ष हैं, वे सब वास्तवमें कार्यकारी हैं" । इससे नय और प्रमाणके द्वारा वस्तुकी सिद्धि होती है यह सिद्धान्त सिद्ध हुआ। इस प्रकार आगमप्रमाणका भी निरूपण किया। इस तरह यह श्रीधर्मभूषणयतिकी रची हुई
न्यायदीपिका समाप्त हुई ।
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