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है वह ठीक नहीं है । (समाधान ) यह कमल आधारविशेषकी अपेक्षा कथंचित् सद्रूप और कथंचित् असद्रूप है, अत एव अनेकान्तात्मक होनेके कारण उसको (कमलको) तुमने भी स्वयं अन्वयदृष्टान्तरूप तो मान ही लिया । इसलिये अब इस विषयमें आपको इतनेसे ही संतोष करना चाहिये । जिस वाक्यका पहले उदाहरण दिया था उस वाक्यसे भी यही निश्चय होता है कि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यकूचारित्र ये तीनों मोक्षके ही कारण हैं न कि संसारके, इस प्रकार विषयविभागकी अपेक्षा सम्यग्दर्शनादिकमें भी कारणपना तथा अकारणपना दोनों धर्म सिद्ध होते हैं । क्योंकि यह नियम है कि जितने वाक्य होते हैं वे सभी कुछ न कुछ अवधारण अवश्य करते हैं । जब कि कुछ न कुछ विशेष अवधि या नियम किया जायगा तो उससे शेष अंशका त्याग या निषेध भी अवश्य ही होगा । बस, यह प्रमाणद्वारा सिद्ध हुआ कि वस्तु अनेकान्तात्मक ही है ।
नया विभज्यन्ते, ननु कोयं नयो नाम? उच्यते । प्रमाणगृहीतार्थंकदेशग्राही प्रमातुरभिप्रायविशेषो नयो "नयो ज्ञातुरभिप्रायः" इत्यभिधानात् । स नयः सझेपेण द्वेधा द्रव्यार्थिकनयः पर्यायार्थिकनयश्चेति । तत्र द्रव्यार्थिकनयः द्रव्यपर्यायरूपमेकानेकात्मकमनेकान्तं प्रमाणप्रतिपन्नमर्थ विभज्य पर्यायार्थिकनयविषयस्य भेदस्योपसर्जनभावनावस्थानमात्रमभ्यनुजानन्स्वविषयं द्रव्यमभेदमेव व्यवहारयति नयान्तरविषयसापेक्षः सनय इत्यभिधानात् । . अब नयोंका विभाग किया जाता है। उसमें पहले यही बताते हैं कि नय क्या चीज है । प्रमाणके द्वारा जाने हुए पदार्थके एक देशको विषय करनेवाले प्रमाताके विशेष अभिप्रायको (ज्ञानरूप) नय कहते हैं। क्योंकि ऐसा वाक्य है कि "ज्ञाताका अभि