Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ वत् । एवमादयोऽप्यकिश्चित्करविशेषाः स्वयमूह्याः । तदेवं हेतुप्रसङ्गाहेत्वाभासा अवभासिताः । ननु व्युत्पन्न प्रति यद्यपि प्रतिज्ञाहेतुभ्यामेव पर्याप्तम् । तथापि बालबोधार्थमुदाहरणादिकमभ्युपगतमाचार्यैः । उदाहरणं च सम्यग्दृष्टान्तवचनम् । कोयं दृष्टान्तो नामेति चेदुच्यते। कोई आगमबाधितविषय होता है जिसका कि विषय आगमसे बाधित होता हो । जैसे, धर्म दुःखका देनेवाला है; क्योंकि वह पुरुषाश्रित है, जो जो पुरुषाश्रित होता है वहदुःखका कारण होता है जैसे अधर्म । यहांपर पुरुषाश्रितत्व हेतुका विषय, 'धर्म सुखका देनेवाला है' इस आगमसे बाधित होता है । कोई खवचनबाधितविषय होता है, जैसे मेरी माता वन्ध्या है, क्योंकि पुरुषका संयोग होनेपर भी प्रसिद्ध वन्ध्या. ओंकी तरह उसको गर्भ नहीं रहता। इसी प्रकार अकिश्चित्कर हेत्वाभासके और भी अनेक भेद हैं, उनका स्वयं विचार कर लेना । इस प्रकार हेतुओंके प्रसंगवश हेत्वाभासोंका निरूपण भी किया। (प्रश्न)-यद्यपि व्युत्पन्नका प्रतिज्ञा और हेतु इन दो. से ही काम चल सकता है तथापि बालबोधके लिये आचार्योंने उदाहरणादिकोंको भी माना है। उनमेंसे उदाहरण तो समीचीन दृष्टान्तके कहनेको कहते हैं । इसलिये यह बतलाइये कि दृष्टान्त किसको कहते हैं ? (उत्तर):___ व्याप्तिसम्प्रतिपत्तिप्रदेशो दृष्टान्तः । व्याप्तिर्हि साध्ये वह्नयादौ सत्येव साधनं धृमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधननियतता साहचर्यलक्षणा । एनामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिशन्ति । तस्याः सम्प्रतिपत्तिर्नाम वादिप्रतिवादिनोर्बुद्धिसाम्यम् । सैषा यत्र सम्भवति स सम्प्रतिपत्तिप्रदेशो महानसादिर्हदादिश्च, तत्रैव

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146