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जिस मका जिस धर्मके साथ सहभाव नियम हो वह उसका साधक होता है । जैसे शिंशपात्वका वृक्षत्वके साथ यह नियम है कि शिशपात्व वृक्षत्वके साथ ही रहता है, इसलिये शिंशपात्व हेतु वृक्षत्वका साधक होजाता है । इसी प्रकार जिसका जिसके साथ क्रमभावनियम हो वह उसका साधक होसकता है। जैसे यह नियम है कि धूम अग्निके अनन्तर उत्पन्न होता है इसलिये धूमका अग्निके साथ क्रमभाव नियम है, अत एव धूम अग्निका साधक होजाता है। परन्तु इस प्रकार मैत्रतनयत्वरूप हेतुका श्यामत्वरूप साध्यके साथ सहभाव या क्रमभावरूप नियम नहीं है, कि जिससे मैत्रतनयत्व हेतु श्यामत्व साध्यका साधक हो सके।
यद्यपि सम्प्रतिपन्नमैत्रपुत्रेषु मैत्रतनयत्वश्यामत्वयोः सहभावोस्ति, तथापि नासौ नियतो, मैत्रतनयत्वमस्तु श्यामत्वं मास्तु इत्येवंरूपे विपक्षे बाधकाभावात् । विपक्षबाधकप्रमाणबलात्खलु हेतुसाध्ययोाप्तिनिश्चयः । व्याप्तिनिश्चयतः सहभावः क्रममावोवा, सहक्रमभावनियमोऽविनाभाव इति वचनात् । विवादाध्यासितो वृक्षो भवितुमर्हति, शिंशपात्वाम् । या या शिंशपा स स वृक्षः, यथा सम्प्रतिपन्न इति । अत्र हि हेतुरस्तु साध्यं मा भूदित्येतसिन् विपक्षे सामान्यविशेषभावभगप्रसङ्गो बाधकः । वृक्षत्वं हि सामान्यं शिंशपात्वं तद्विशेषः । न हि विशेषः सामान्याभावे सम्भवति ।।
यद्यपि वर्तमान सभी मित्रके पुत्रोंमें मैत्रतनयत्व (हेतु) और श्यामत्व (साध्य) का सहभाव है; तथापि यह सर्वथा नियमित नहीं है, क्योंकि यदि मैत्रतनयत्व हो और वहांपर श्यामत्व न रहै तो इस प्रकारके विपक्षमें कोई बाधक प्रमाण नहीं है । विपक्षमें बाधक प्रमाणका बल मिलनसे ही हेतु और साध्यमें व्याप्तिका