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वृक्षविशेषः सामान्यभूतं वृक्षं गमयति । नहि वृक्षाभावे वृक्षविशेष घटते इति ।
(शङ्का) - कार्यसे तो कारणका अनुमान हो सकता है; क्योंकि कारणके अभाव में कार्य कभी और कहीं भी नहीं रहता । परन्तु कारणसे कार्यका अनुमान नहीं हो सकता; क्योंकि कारण कार्यके अभाव में भी रहता है । जैसे अग्नि धूमके अभाव में भी रहती है । अत एव वह धूमका अनुमान नहीं करा सकती । अर्थात् जैसे अग्निसे धूमका अनुमान नहीं होता उसी तरह किसी भी कारण से कार्यका अनुमान नहीं हो सकता; क्योंकि कार्यके अभाव में भी कारण रहता है । (समाधान) - यह शङ्क ठीक नहीं है; क्योंकि जिस कारणकी शक्ति इस प्रकार प्रगट है कि इसके पीछे अवश्य कार्यकी उत्पत्ति होगी वह कारण भी कार्यका अनुमापक होता है; क्योंकि उसका कार्यके साथ व्यभिचार नहीं है ।
कोई विशेषरूप हेतु होता है जैसे कि यह वृक्ष है; क्योंकि अन्यथा शिंशपा नहीं हो सकता । यहांपर वृक्षत्व विशेषका जो शिशपात्वरूप हेतु वह वृक्षत्वसामान्य का अनुमान कराता है; क्योंकि सामान्य वृक्षके न रहनेपर वृक्षविशेष नहीं रह सकता ।
कश्चित्पूर्वचरो, यथा उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयान्यथानुपपत्तेरित्यत्र कृत्तिकोदयः । कृत्तिकोदयानन्तरं मुहूर्तान्ते नियमेन शकटोदयो जायते इति कृत्तिकोदयः पूर्वचरो हेतुः शकटोदयं गमयति । कचिदुत्तरचरो, यथा उदगाद्भरणी प्राक्कृत्तिकोदयान्यथानुपपत्तेरित्यत्र कृत्तिकोदयः । कृतिकोदयो हि भरण्युदयोत्तरचरस्तं गमयति । कश्चित्सहचरो,
१ जैसे वृक्षको देखकर छायाका अनुमान होता है । वृक्ष छायाका कारण होकर भी छायाका अनुमापक होता है । २ सीसम ।