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वह अभावरूप ही धूमाभाव साध्यको सिद्ध करता है, इसलिये इसको प्रतिषेधरूप प्रतिषेधसाधक हेतु कहते हैं । इस प्रकार विधिरूप तथा प्रतिषेधरूपके भेदसे दो भेदरूप हेतुके थोड़ेसे अवान्तर भेदोंका उदाहरणपूर्वक निरूपण किया। यदि अधिक जाननेकी इच्छा हो तो परीक्षामुखसे समझना । इस प्रकार जिनका लक्षण पहले कह चुके हैं, वे ही हेतु साध्यकी सिद्धि करसकते हैं, और नहीं; क्योंकि उनसे विपरीत बाकी के सभी हेत्वाभास हैं ।
के ते हेत्वाभासा इति चेदुच्यन्ते । हेतुलक्षणरहिता हेतुवदवभासमाना हेत्वाभासाः । ते चतुर्विधाः असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाकिञ्चित्करभेदात् । तत्रानिश्चयपथप्राप्तोऽसिद्धः । अनिश्चयपथप्राप्तिश्च हेतोः स्वरूपाभावनिश्चयात्तत्स्वरूपसन्देहाच्च । स्वरूपाभावनिश्चये खरूपासिद्धः । स्वरूप सन्देहे सन्दिग्धासिद्धः । आद्यो यथा, परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वादिति । शब्दस्य हि श्रावणत्वाच्चाक्षुषत्वाभावो निश्चित इति स्वरूपासिचाक्षुषत्वहेतुः । द्वितीयो यथा, धूमवाष्पादिविवेकानिश्चये कश्चिदाह अग्निमानयं प्रदेशो धूमवत्त्वादिति । अत्र हि धूमवत्त्वं हेतुः सन्दिग्धासिद्धस्तत्स्वरूपे सन्देहात् ।
वे हेत्वाभास कोनसे हैं ? इसका उत्तर आगे बताते हैं । जिनमें हेतुका लक्षण तो घटित न हो किन्तु जो हेतु के समान मालूम पड़े उनको हेत्वाभास कहते हैं। उनके चार भेद हैं-असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक, अकिश्चित्कर । जो निश्चयके मार्गपर आरूढ न हो अर्थात् जिसका निश्चय न हो उसको असिद्ध कहते हैं । हेतुका अनिश्चय दो कारणोंसे होता है, उसके स्वरूपके अभावका निश्चय होनेसे अथवा उस ( हेतु ) के स्वरूप में सन्देह होनेसे । जिस हेतुके स्वरूपके अभावका निश्चय हो उसको स्वरूपासिद्ध