________________
१०६
क्षवृत्ति अर्थात् जिसका विपक्षमें रहना सन्दिग्ध हो । जैसे यहांपर धूम है; क्योंकि यहांपर अग्नि है । इस अनुमानमें अग्निरूप हेतु पहला अनैकान्तिक हेत्वाभास है; क्योंकि वह पक्षभूत सामनेके प्रदेशमें भी रहता है जहांपर यह सन्देह है कि यहां धूम है या नहीं। एवं सपक्षभूत धूमसहित महानसमें भी रहता है । इसीप्रकार अङ्गार अवस्थाको प्राप्त अग्निसे युक्त विपक्षभूत स्थानमें भी रहता है, जहांपर यह निश्चय है कि यहां धूम नहीं रहता । इस लिये (विपक्षमें रहनेका निश्चय होनेसे) यह हेतु निश्चितविपक्षवृत्तिनामक अनैकान्तिक हेत्वाभास है।
द्वितीयो यथा, गर्भस्थो मैत्रतनयः श्यामो भवितुमर्हति मैत्रतनयत्वादितरतनयवदिति। अत्र हि मैत्रतनयत्वं हेतुः पक्षीकृते गर्भस्थे वर्तते, सपक्षे इतरतत्पुत्रे वर्तते, विपक्षे अश्यामे वर्तते । नापीति शङ्काया अनिवृत्तेः शङ्कितविपक्षवृत्तिकः । अपरमपि शङ्कितविपक्षवृत्तिकस्योदाहरणम् । अर्हन् सर्वज्ञो न भवति वक्तृत्वाद्रथ्यापुरुषवदिति । वक्तृत्वस्य हि हेतोः पक्षीकृतेऽर्हति, सपक्षे रथ्यापुरुषे यथा वृत्तिरस्ति तथा विपक्षे सर्वज्ञेपि वृत्तिः सम्भाव्यते, वक्तृत्वज्ञातृत्वयोरविरोधात् । यद्धि येन सह विरोधि तत्खलु तद्वति न वर्तते । नच वचनज्ञानयोलॊके विरोधोऽस्ति, प्रत्युत ज्ञानवत एव वचनसौष्ठवं स्पष्टं दृष्टम् । ततो ज्ञानोत्कर्षवति सर्वज्ञे वचनोत्कर्षे कानुपपत्तिरिति ।
दूसरे शङ्कितविपक्षवृत्ति अनैकान्तिकका उदाहरण देते हैं । जैसे, मैत्रका गर्भस्थित पुत्र दूसरे मैत्र पुत्रोंकी तरह श्याम है; क्योंकि वह मैत्रका पुत्र है। यहांपर मैत्रका पुत्रपना हेतु, पक्षीभूत