Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 53
________________ र कश्चिदाह "अक्षं नाम चक्षुरादिकमिन्द्रियं तत्प्रतीत्य यदुत्पद्यते तदेव प्रत्यक्षमुचितं नान्यत्" इति तदप्यसत् । आत्ममात्रसापेक्षाणामवधिमनःपर्ययकेवलानामिन्द्रियनिरपेक्षाणामपि प्रत्यक्षत्वाविरोधात् । स्पष्टत्वमेव हि प्रत्यक्षत्वप्रयोजक नेन्द्रियजन्यत्वम् । अत एव हि मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानां ज्ञानत्वेन प्रतिपन्नानां मध्ये "आये परोक्षम्" "प्रत्यक्षमन्यदि"त्याद्ययोमैतिश्रुतयोः परोक्षत्वकथनमन्येषां स्ववधिमनःपर्ययकेवलानां प्रत्यक्षत्ववाचोयुक्तिः। यहांपर कोई इस प्रकार शङ्का करता है कि "अक्ष नाम इन्द्रियका है उसकी सहायतासे जो ज्ञान उत्पन्न हो उसको प्रत्यक्ष कहते हैं, औरको नहीं" । परन्तु यह शङ्का ठीक नहीं है, क्योंकि इन्द्रियोंकी अपेक्षाको न रखकर केवल आत्मासे ही उत्पन्न होनेवाले, अवधि मनःपर्यय केवलज्ञानके भी प्रत्यक्ष होने में कोई विरोध नहीं है। इसका कारण यह कि स्पष्टता ही प्रत्यक्षताका कारण है, न कि इन्द्रियोंसे उत्पन्न होना । इसीलिये, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल, इन पांच ज्ञानोंमेसे आदिके दो मतिज्ञान और श्रुतज्ञानको “आद्ये परोक्षम्" इस सूत्रसे परोक्ष कहा है, और शेष अवधिमनःपर्ययकेवलज्ञानको "प्रत्यक्षमन्यत्" इस सूत्रसे प्रत्यक्ष कहा है। ___ कथं पुनरेतेषां प्रत्यक्षशब्दवाच्यत्वमिति चेत् रूढित इति ब्रूमः । अथवा अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा तन्मात्रापेक्षोत्पत्तिकं प्रत्यक्षमिति किमनुपपन्नम् ? तर्हि इन्द्रियजन्यमप्रत्यक्षं प्राप्तमिति चेत् हन्त विसरणशीलत्वं वत्सस्य । अवोचामः खल्वौपचारिकं प्रत्यक्षत्वमक्षजज्ञानस्य ततस्तस्याप्रत्यक्षत्वं कामं प्राप्नोतु, का नो हानिः । एते.

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