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मानत्वात् । ननु केषुचित्सपक्षेषु धूमवत्वं न वर्तते, अङ्गारावस्थापनाग्निमत्सु प्रदेशेषु धूमाभावादिति चेन्न, सपक्षैकदेशवृत्तेरपि हेतुत्वात् । सपक्षे सर्वत्रैकदेशे वा वृत्तिर्हेतोः सपक्षे सत्त्वमित्युक्तत्वात् । विपक्षाब्यावृत्तिरप्यस्ति, धूमवत्त्वस्य सर्वमहाहृदादिविपक्षाद्यावृत्तेः । अबाधितविषयत्वमप्यस्ति, धूमवत्त्वस्य हेतोर्यो विषयोऽग्निमत्त्वाख्यं साध्यं तस्य प्रत्यक्षादिप्रमाणाबाधितत्वात् । असत्प्रतिपक्षत्वमप्यस्ति, अग्निरहितत्वसाधकसमबलप्रमाणासम्भवात् । तथा च, पाश्चरूप्यसम्पत्तिरेव धूमवत्वस्य साध्यसाधकत्वे निवन्धनम् । एवमेव सर्वेषामपि सद्धेतूनां रूपपञ्चकसम्पत्तिरूहनीया ।
यहांपर अग्निरूप साध्यधर्मसे युक्त पर्वतरूप धर्मी पक्ष है। धूमवत्त्व हेतु है । इसमें पक्षधर्मत्व खरूप है, क्योंकि यह पर्वतरूप पक्षमें रहता है । महानसरूप सपक्षमें रहता है, इसलिये सपक्षसत्त्व भी है । यहांपर यह शङ्का नहीं हो सकती कि "जिस स्थानपर अङ्गार अवस्थाको प्राप्त अग्नि है वहांपर धूम नहीं रहता इसलिये किसी किसी सपक्षमें धूमवत्त्व हेतु नहीं रहता है" क्योंकि सपक्षके एकदेशमें रहनेवालेको भी हेतु कहते हैं । ऐसा कहा है कि “सम्पूर्ण सपक्षमें अथवा उसके एकदेशमें भी यदि हेतु रहता हो तो सपक्षसत्व हो जाता है"। विपक्षसे व्यावृत्ति भी है, क्योंकि यह धूमवत्त्व हेतु किसी भी महाहदादिरूप विपक्षमें नहीं रहता । अवाधितविषयत्व भी है, क्योंकि धूमरूप हेतुका अग्निरूप साध्य जो विषय है उसके साथ अविनाभाव होने में किसी भी प्रत्यक्षादि प्रमाणसे बाधा नहीं आती । इसी प्रकार असत्प्रतिपक्षत्व भी है, क्योंकि धूमयुक्त स्थानमें अग्निके न रहनेका साधक कोई भी समबल प्रमाण अर्थात् अनुमान नहीं है । इसलिये साध्यकी सिद्धि करने हेतुकी पञ्च