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रूप सामग्रीका योग ही कारण है। इसी प्रकार दूसरे स्थानों में भी सम्पूर्ण सद्धेतुओंकी पञ्चरूप सामग्रीके योगका विचार करलेना चाहिये।
तदन्यतमविरहादेव खलु पञ्च हेत्वाभासाः, असिद्धविरुद्धानैकान्तिककालात्ययापदिष्टप्रकरणसमाख्याः सम्पन्नाः । तथा हि, अनिश्चितपक्षवृत्तिरसिद्धः। यथा अनित्यः शब्दश्चाक्षुषत्वात् । अत्र हि चाक्षुषत्वं हेतुःपक्षीकृते शब्दे न वर्तते, श्रावणत्वात् शब्दस्य। तथा च पक्षधर्मत्वविरहादसिद्धत्वं चाक्षुषत्वस्य । साध्यविपरीतव्याप्तो विरुद्धः । यथा नित्यः शब्दः कृतकत्वादिति । कृतकत्वं हेतुः साध्यभूतनित्यत्वविपरीतेनानित्यत्वेन व्यात, सपक्षे च गगनादावविद्यमानत्वाद्विरुद्धः।
इन रूपोंमेंसे एकके भी न रहनेसे ही असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक, कालात्ययापदिष्ट, प्रकरणसम इस प्रकार पांच हेत्वाभास हो जाते हैं । जिस हेतुका पक्षमें रहना निश्चित न हो उसको असिद्ध कहते हैं । जैसे कि शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष है, अर्थात् चक्षुरिन्द्रियसे उसका जानना होता है । यहांपर चाक्षुषत्व हेतु पक्षरूप शब्दमें नहीं रहता, क्योंकि वह श्रावण है, अर्थात् उसका श्रोत्रेन्द्रियसे ही जानना होता है । इसलिये पक्षधर्मत्व न होनेसे चाक्षुषत्व हेतु असिद्धनामक हेत्वाभास है। जिस हेतुकी साध्यसे विपरीतके साथ ही व्याप्ति अर्थात् रहना हो उसको विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं । जैसे कि शब्द नित्य है, क्योंकि कृत्रिम है । यहांपर कृत्रिमत्वरूप हेतुकी साध्यभूत नित्यत्वसे विपरीत अनित्यत्वके ही साथ व्याप्ति है । और यह सपक्षरूप आकाशादिकमें नहीं रहता इसलिये विरुद्धनामक हेत्वाभास यह कहा जाता है । अर्थात् जहांपर साध्यका निश्चय हो उसको सपक्ष कहते हैं । आकाशमें साध्यभूत नित्यताका