Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 100
________________ दिति हेतुः प्रतिसाधनेन प्रतिरुद्धः। किं तत्प्रतिसाधनमिति चेत्, नित्यः शब्दोऽनित्यधर्मरहितत्वादिति नित्यत्वसाधनम् । तथा चासत्प्रतिपक्षत्वाभावात् प्रकरणसमत्वं नित्यधर्मरहितत्वादिति हेतोः। जो हेतु प्रतिसाधनसे प्रतिरुद्ध हो; अर्थात् साध्यसे विपरीत साधनेवाले दूसरे किसी विरुद्ध हेतुद्वारा जो हेतु अपने इष्ट साध्यको सिद्ध न कर सकै उसको प्रकरणसम कहते हैं। जैसे कि शब्द अनित्य है, क्योंकि उसमें नित्यपदार्थका धर्म (नित्यत्व) नहीं रहता । यहांपर 'नित्यके धर्मसे रहित होना' ऐसा जो हेतु, वह विरोधीसाधनसे रोका गया है । वह विरोधीसाधन क्या है? शब्द नित्य है, क्योंकि उसमें अनित्यत्व धर्म नहीं रहता इसप्रकार नित्यत्वसाधक हेतु विरोधी है । इसलिये नित्यधर्मसे रहित होना, ऐसा जो हेतु वह असत्प्रतिपक्षत्वरूप हेतुखरूपके न रहनेसे प्रकरणसम हेत्वाभास है। तसात्पाञ्चरूप्यं हेतोर्लक्षणमन्यतमाभावे हेत्वाभासत्वप्रसङ्गादिति सूक्तम् । हेतुलक्षणरहिता हेतुवदवभासमानाः खलु हेत्वाभासाः। पञ्चरूपान्यतमशून्यत्वाद्धेतुलक्षणरहितत्वं कति. पयरूपसम्पत्तेर्हेतुवदवभासमानत्वमिति वचनादिति । तदेतत्तदपि नैयायिकाभिमननमनुपपन्न, कृत्तिकोदयस्य पक्षधर्मरहितस्यापि शकटोदयं प्रति हेतुत्वदर्शनात्पाश्चरूप्यस्याव्याप्तेः। इस लिये यह ठीक ही कहा कि पाश्चरूप्य ही हेतुका लक्षण है। इनमेंसे एकके भी न रहनेसे वह हेतु हेत्वाभास हो जाता है। जिसमें हेतुका लक्षण तो घटित न हो परन्तु हेतुके समान मालूम पडै उसको हेत्वाभास कहते हैं। क्योंकि ऐसा कहा है कि "ये असिद्धादिक हेत्वाभास, हेतुके पांच रूपोंमेसे किसी एक दोके न होनेसे हेतुके लक्षणसे रहित हैं और कति

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