________________
सिद्धि करते हैं । यह कृतकत्व हेतु शब्दरूप पक्षमें रहता है इसलिये उसमें पक्षधर्मत्व है । घटादिक सपक्षमें रहता है (इसलिये सपक्षमें सत्ता भी है) और आकाशादिक विपक्षमें नहीं रहता (इसलिये विपक्षसे व्यावृत्ति भी है) इसलिये यह हेतु अन्वयव्यतिरेकी है।
पक्षसपक्षवृत्तिर्विपक्षत्तिरहितः केवलान्वयी । यथाऽदृष्टादयः कस्यचित्प्रत्यक्षा, अनुमेयत्वात् । यद्यदनुमेयं तत्तत्कस्यचित्प्रत्यक्षम् । यथाऽग्यादिरिति । अत्र 'अदृष्टादय पक्षा, कस्यचित्प्रत्यक्षत्वं साध्यम् , अनुमेयत्वं हेतुः, अम्याद्यन्वयदृष्टान्तः। अनुमेयत्वं हेतु पक्षीकृतेऽदृष्टादौ वर्तते, सपक्षभूतेऽज्यादौ वर्तते, ततः पक्षधर्मत्वं सपक्षे सत्त्वं चास्ति । विपक्षः पुनरत्र नास्त्येव, सर्वस्यापि पक्षसपक्षान्तर्भावात् । तस्माद्विपक्षाब्यावृत्तिर्नास्त्येव, व्यावृत्तेरवधिसापेक्षत्वादवधिभूतस्य च विपक्षस्याभावात् । शेषमन्वयव्यतिरेकिवद्रष्टव्यम् ।।
जो हेतु पक्ष और सपक्षमें रहै किन्तु विपक्षमें न रहै उसको केवलान्वयी कहते हैं। जैसे अदृष्टादिक किसीके प्रत्यक्ष हैं; क्योंकि अनुमेय हैं । जो जो अनुमेय होते हैं वे वे किसीके प्रत्यक्ष अवश्य होते हैं, जैसे अग्नि आदिक । यहांपर 'अदृष्टादिक' पक्ष है, किसी जीवको उसका प्रत्यक्ष होना साध्य है, अनुमेयत्व हेतु है और 'अग्यादि' दृष्टान्त है । अनुमेयत्व हेतु अदृष्टादिक पक्षमें और अग्न्यादिक सपक्षमें रहता है इसलिये उसमें पक्षधर्मत्व तथा सपक्षसत्त्व मिलता है। किन्तु विपक्ष यहांपर कोई नहीं है। क्योंकि सब पदार्थोंका पक्ष और सपक्षमें ही अन्तर्भाव होजाता है। इसलिये यहांपर विपक्षसे व्यावृत्ति होना संभव नहीं है। व्यावृत्ति अवधिकी अपेक्षा रखती है और अवधिभूत विपक्ष यहांपर कोई है ही नहीं। यही इस केवलान्वयी हेतुमें विशेषता है, शेष सब अन्वयव्यतिरेकीके समान है। . . .