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धर्मका आश्रय हो, अर्थात् जहांपर साध्यको सिद्ध करना हो उस साध्ययुक्त धर्मीको पक्ष कहते हैं, जैसे कि अग्निका अनुमान करते समय पर्वत । उस पक्षके भीतर हेतुके रहनेको पक्षधर्मत्व कहते हैं। जिसमें साध्यका सजातीय धर्म पाया जाय अर्थात् जहां साध्य साधन दोनों उपलब्ध होते हों उस धर्मीको सपक्ष कहते हैं, जैसे कि इसी अग्निविषयके अनुमानमें रसोईघर। उस सपक्षके एकदेशमे अथवा सम्पूर्ण स्थलमें हेतुके रहनेको सपक्षसत्व कहते हैं । साध्यके विरुद्ध-धर्मवाले स्थलको विपक्ष कहते हैं, जैसे कि अग्निके अनुमानमें महाह्रद । ऐसे ऐसे सम्पूर्ण विपक्षोंसे हेतुके सर्वथा अलग रहनेको विपक्षाद्यावृत्ति कहते हैं । उक्त तीनों ही रूप मिलकर हेतुका लक्षण होता है, पृथक् पृथक नहीं। यदि उक्त तीनों रूपोंमेसे एक भी रूप जिस हेतुमें न हो तो वह सद्धेतु नहीं है किन्तु उसे हेत्वाभास मानना चाहिये। ___ तदसङ्गतं, कृत्तिकोदयादेहतोरपक्षधर्मस्य शकटोदयादिसाध्यगमकत्वदर्शनात्। तथा हि, शकटं धर्मि मुहूर्तान्ते उदेष्यति कृत्तिकोदयादिति।अत्र हि शकटः पक्षः,मुहूर्तान्ते उदयः साध्यः, कृत्तिकोदयो हेतुः । नहि कृत्तिकोदयो हेतुः पक्षीकृते शकटे वर्तते । अतो न पक्षधर्मः। तथाप्यन्यथानुपपत्तिवलाच्छकटोदयाख्यं साध्यं गमयत्येव । तस्माद्वौद्धाभिमतं हेतोलक्षणमव्याप्तम्।
परन्तु यह उनका कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, कृत्तिकोदयरूप हेतुमें यद्यपि पक्षधर्मत्व नहीं है तो भी वह शकटोदयरूप साध्यका निश्चय कराता है। अर्थात् एक मुहूर्तके अनन्तर शकटका उदय होगा, क्योंकि अभी कृत्तिकाका उदय है । यहाँपर शकट धर्मी है और एक मुहूर्तके अनन्तर उसका उदय होना साध्य है । कृत्तिकाका उदय हेतु है । यह कृत्तिकाका उदयरूप हेतु पक्षरूप शकटमें नहीं रहता है, इसलिये इसमें पक्षधर्मत्व नहीं रहा; तथापि, अन्यथानुपपत्तिके बलसे शकटो.