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निश्चितसाध्यान्यथानुपपत्तिकं साधनम् । यस्य साध्याभावासम्भवनियमरूपा व्याप्त्यविनाभावाद्यपरपोया साध्यान्यथानुपपत्तिस्तकांख्येन प्रमाणेन निर्णीता तत्साधनमित्यर्थः। तदुक्तं कुमारनन्दिभट्टारकैः "अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं लिङ्गमभ्यत" इति ।
जिससे साध्यज्ञानरूप अनुमान होता है उस साधनका लक्षण क्या है ? जिसकी साध्यके विना अनुपपत्ति निश्चित है उसको साधन कहते हैं । अर्थात् साध्यके अभावमें (विना) जिसका रहना असम्भव हो ऐसी नियमरूप साध्यान्यथानुपपत्ति, जिसको व्याप्ति अथवा अविनाभाव भी कहते हैं, तर्क प्रमाणसे निर्णीत हुई हो उसको साधन कहते हैं । इस विषयमें कुमारनन्दी भट्टारकने ऐसा कहा है कि “लिङ्ग उसको समझो कि जि. सका लक्षण अन्यथानुपपत्ति ही है" । अर्थात् जिसका इस प्रकारका सम्बन्ध निश्चित है कि यह साध्यके विना नहीं रहता उसीको साधन कहते हैं।
किं तत्साध्यं यदविनाभावः साधनलक्षणम् ? उच्यते । शक्यमभिप्रेतमप्रसिद्ध साध्यम् । यत्प्रत्यक्षादिप्रमाणाबाधितत्वेन साधयितुं शक्यं, वाद्यभिमतत्वेनाभिप्रेतं, सन्देहाद्याक्रान्तत्वेनाप्रसिद्धं, तदेव साध्यम् । अशक्यस्य साध्यत्वे वह्नयनुष्णत्वादेरपि साध्यत्वप्रसङ्गात् । प्रसिद्धस्य साध्यत्वे पुनरनुमानवैयर्थ्यात् ।
जिसके अविनाभावको साधनका लक्षण कहते हैं उस सा. ध्यका लक्षण क्या है ? जो शक्य और अभिप्रेत तथा अप्रसिद्ध हो उसको साध्य कहते हैं । अर्थात्-जिसमें प्रत्यक्षादि प्रमाणसे बाधा न आवे इस प्रकारसे जो सिद्ध किया जासके उसको शक्य कहते हैं; जो वादीको अभिमत हो उसको अभिप्रेत