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वह परार्थानुमान है। अर्थात् प्रतिज्ञा और हेतुरूप दूसरेका उपदेश सुननेवालेको जो साधनसे साध्यका ज्ञान होता है उसे परार्थानुमान कहते हैं । जैसे कि “इस पर्वतमें अग्नि होनी चाहिये, क्योंकि यदि यहांपर अग्नि न होती तो धूम नहीं हो सकता था" इस प्रकार किसीके कहनेपर सुननेवालेको उक्त वाक्यके अर्थका विचार करते हुए और व्याप्तिका स्मरण होनेसे जो अनुमान होता है वह परार्थानुमान है।
परोपदेशवाक्यमेव परार्थानुमानमिति केचित्, त एवं प्रष्टव्याः, तत्कि मुख्यानुमानमथवा गौणानुमानमिति ? न तावन्मुख्यानुमानम् , वाक्यस्याज्ञानरूपत्वात् । गौणानुमानं तद्वाक्यमिति त्वनुमन्यामहे, तत्कारणे तद्वयपदेशोपपत्तेरायुर्वै घृतमित्यादिवत् । तस्यैतस्य परार्थानुमानस्याङ्गसम्पत्तिः= वार्थानुमानवत्परार्थानुमानप्रयोजकस्य च वाक्यस्य द्वाववयवौ, प्रतिज्ञा हेतुश्च ।
कोई (नैयायिक) दूसरेके वचनको ही परार्थानुमान कहते हैं, अर्थात्-जिस वाक्यसे दूसरेको अनुमान होता है, वह वाक्य ही परार्थानुमान हैं, ऐसा कहते हैं। परन्तु उनसे यह पूछना चाहिये कि वह वाक्य मुख्यानुमान है अथवा गौणानुमान ? मुख्यानुमान तो हो नहीं सकता, क्योंकि वाक्य अज्ञानरूप होता है । यदि गौणानुमान है तो ठीक है, क्योंकि अनुमानरूप कार्यका उपचार उसके कारणभूत वाक्यमें हो सकता है, जैसे कि "घृत ही आयु है" इस दृष्टान्तमें आयुके कारणरूप घृतको ही आयु कह दिया है । उक्त परार्थानुमान जिस वाक्यसे उत्पन्न होता है उस वाक्यके स्वार्थानुमानकी तरह दो अवयव हैं; एक प्रतिज्ञा दूसरा हेतु । यही इस परार्थानुमानका अवयवविभाग समझना चाहिये। । तत्र धर्मधर्मिसमुदायरूपस्य पक्षस्य वचनं प्रतिज्ञा । यथा