Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 87
________________ ७६ पर्वतोयमग्निमानिति । साध्याविनाभावि साधनवचनं हेतुः । यथा धूमवत्त्वान्यथानुपपत्तेरिति, तथैव धूमवच्त्वोपपत्तेरिति वा । अनयोर्हेतुप्रयोगयोरुक्तिवैचित्र्यमात्रम् । पूर्वत्र धूमवश्वान्यथानुपपत्तेरिति अयमर्थः - धूमवच्चस्याग्निमत्त्वाभावेऽनुपपत्तेरिति निषेधमुखेन प्रतिपादनम् । द्वितीये तु तथैव धूमवत्त्वोपपत्तेरिति अयमर्थ:- अग्निमन्वे सत्येव धूमवत्त्वोपपतैरिति विधिमुखेन कथनम् । अर्थस्तु न भिद्यते, उभयत्राप्यविमाभाविसाधनाभिधानाविशेषात् । ततस्तयोर्हेतुप्रयोगयोरन्यतर एव वक्तव्य उभयप्रयोगे पौनरुक्त्यात् । तथा चोक्तलक्षणा प्रतिज्ञा, एतयोरन्यतरो हेतु प्रयोगश्चेत्यवयवद्वयं परार्थानुमानवाक्यस्येति व्युत्पन्नस्य श्रोतुस्तावन्मात्रेणैवानुमित्युदयात् । 1 धर्म और धर्मीके समुदायरूप पक्षके कहनेको प्रतिज्ञा कहते हैं । जैसे कि "यह पर्वत अग्निसहित है ।" साध्यके विना न होनेवाले साधनको दिखाना सो हेतु है । जैसे कि "क्योंकि अन्यथा यहां पर धूम नहीं हो सकता अथवा अग्नि रहनेपर ही धूम हो सकता है”"” इन दोनों ही हेतुओंके प्रयोगों में केवल कहनेकी विचित्रता है । " अन्यथा धूम नहीं हो सकता" इसका यह अर्थ है कि अग्निके अभाव में धूम नहीं होसकता । यहांपर यह कहना निषेधकी मुख्यता से समझना चाहिये । "क्योंकि यहांपर धूम है" इस दूसरे हेतु प्रयोगका यह अर्थ है कि अग्निके होनेपर ही घूम होता है । अर्थात् यहां पर विधिमुखसे कथन है। दोनों ही हेतुप्रयोगोंके अर्थ में कोई भेद नहीं है । क्योंकि साध्यके होनेपर ही साधनका होना दोनों प्रयोगों में समान दिखाया गया है । अत एव दोनों प्रयोगों में से कोई एक कहना चाहिये; क्योंकि दोनोंके कहनेसे पुनरुक्ति दोष हो जाता है । इस

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